Friday, November 22, 2024
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केजरीवाल पर कुमार के चुभते बोल, कहा-जो लफ्ज़ों पे मरते थे, वो लफ्ज़ों से डरते हैं

पूरे हिंदुस्तान को अपने विचारों के साथ जोड़ने का दावा करने वाले एक दूसरे के साथ जुड़ने को तैयार नहीं हैं। अन्ना हजारे के अनशन से शुरू हुई एक यात्रा मौकापरस्ती पर अटक गई है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: January 23, 2018 10:31 IST
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केजरीवाल पर कुमार के चुभते बोल, कहा-जो लफ्ज़ों पे मरते थे, वो लफ्ज़ों से डरते हैं

नई दिल्ली: हाशिए पर आए आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने कविताओं और कहानियों के जरिए एक बार फिर बहुत कुछ कहा है। एक कवि सम्मेलन में कुमार विश्वास ने केजरीवाल का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह दिया। कविता में कभी अर्जुन का जिक्र किया तो कभी अभिमन्यु का। आंदोलन की गलियों से सियासत की राह पर चलने वाले केजरीवाल और कुमार आज एक दल में तो हैं लेकिन दोनों के दिल एक नहीं हैं। कुमार विश्वास ने पहले भी बहुत कुछ कहा है लेकिन उन्होंने इस बार जो कुछ कहा है वो केजरीवाल को चुभ सकते हैं।

शब्दों को जोड़कर निशाना साधने का हुनर जैसा आप के नेता कुमार विश्वास को आता है सियासत में किसी को नहीं आता। पिछले कई महिनों से अरविंद केजरीवाल की प्रभुसत्ता पर सवाल उठाने वाले कुमार विश्वास अब अलग-अलग मंचों से खुलकर बोल रहे हैं। कविता और कहानियों के जरिए वो बता रहे हैं सत्ता हाथ में आती है तो साथी भी बदल जाते हैं।

कुमार विश्वास ने कहा.....

कि पुरानी दोस्ती को...
इस नई ताकत से मत तोलो...
कि पुरानी दोस्ती को...
इस नई ताकत से मत तोलो...
ये संबंधों की तुरपाई है...
षड्यंत्रों से मत खोलो...
ये संबंधों की तुरपाई है...
ये संबंधों की तुरपाई है...
षड्यंत्रों से मत खोलो...
मेरे लहजे की छैनी से...
गढ़े कुछ देवता जो कल...
मेरे लहजे की छैनी से...
गढ़े कुछ देवता जो कल...
मेरे लफ्जों पे मरते थे...
वो अब कहते हैं...मत बोलो...

महाराष्ट्र के अहमदनगर में कवि सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। देश भर से कई कवियों को बुलाया गया था। सबने अपनी कविता पढ़ी और जब कुमार विश्वास आए तो छा गए। आंदोलन में साथ साथ काम करने वाले साथियों का नाम तो नहीं लिया उन्होंने लेकिन उनकी गीत का मतलब सीधा था। आप का मतलब केजरीवाल और केजरीवाल का मतलब आप और आप में अब बोलने की भी आजादी नहीं।

वो बोले दरबार सजाओ...
वो बोले जयकार लगाओ...
वो बोले दरबार सजाओ...
वो बोले जयकार लगाओ...
वो बोले हम जितना बोले...
तुम केवल उतना दोहराओ...
वो बोले दरबार सजाओ...
वो बोले जयकार लगाओ...
वो बोले हम जितना बोले...
तुम केवल उतना दोहराओ...
वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते...
वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते...
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते

आम आदमी पार्टी में एक मंच से साथ-साथ नारे लगाने वाले हर चेहरे का राजनैतिक चरित्र बेपर्दा होता जा रहा है। कुमार विश्वास वही बताने की कोशिश कर रहे थे। जो कभी उनकी आवाज के कायल थे, आज बोलने नहीं देते। अगली पंक्ति में उन्होंने समझाया कि जनता ने सत्ता की बेहिसाब ताकत दी तो कुछ लोग आपको वीर समझने लगते हैं।  

हमने कहा अभी मत बदलो...
दुनिया की आशाएं हम हैं...
वो बोले अब तो सत्ता कि वरदाई भाषा हम हैं...
वो बोले अब तो सत्ता कि वरदाई भाषा हम हैं...
हमने कहा व्यर्थ मत बोलो...
हमने कहा व्यर्थ मत बोलो...
गूंगों की भाषाएं हम हैं...
वो बोले बस शोर मचाओ...
इसी शोर से आए हम हैं...
वो बोले बस शोर मचाओ...
इसी शोर से आए हम हैं...
वो बोले बस शोर मचाओ...
इसी शोर से आए हम हैं...
इतने कोलाहल में मन की क्या कहते...
इतने कोलाहल में मन की क्या कहते...
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते  
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते

दरअसल आम आदमी पार्टी का आज यही सच है। पूरे हिंदुस्तान को अपने विचारों के साथ जोड़ने का दावा करने वाले एक दूसरे के साथ जुड़ने को तैयार नहीं हैं। अन्ना हजारे के अनशन से शुरू हुई एक यात्रा मौकापरस्ती पर अटक गई है और इसी सच को कुमार विश्वास कविताओं के जरिए बता रहे थे। कुमार विश्वास पार्टी से नाराज है क्योंकि ना उन्हें राज्यसभा की सीट मिली ना उन्हें पार्टी में कोई बड़ा पद लेकिन कुमार विश्वास अकेले नहीं है जिन्होंने अन्ना के साथ मिलकर गैर राजनैतिक आंदोलन खड़ा किया था और अरविंद केजरीवाल ने उन्हें पार्टी से किनारा कर दिया।

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