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अग्निपरीक्षा: किस मोर्चे पर मजबूत हैं अखिलेश और कहां कमजोर

उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सत्ता के असर की अग्निपरीक्षा है। क्या वो मुख्यमंत्री के तौर पर कामयाब रहे या फिर परिवार में मचे घमासान में उनकी बलि चढ़ जाएगी।

India TV News Desk
Updated on: January 04, 2017 20:43 IST
Akhilesh Yadav- India TV Hindi
Image Source : PTI Akhilesh Yadav

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सत्ता के असर की अग्निपरीक्षा है। क्या वो मुख्यमंत्री के तौर पर कामयाब रहे या फिर परिवार में मचे घमासान में उनकी बलि चढ़ जाएगी। आपको बताते हैं कि क्या है अखिलेश की जीत का फैक्टर और क्या है चुनाव में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी।  

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चुनावी समर आसान नहीं

​यूपी की सत्ता पर जिस पार्टी का कब्जा है वो खुद टूट की कगार पर है। जब मौका था एकजुट होने का तब यहां पार्टी पर कब्जे की जंग छिड़ी है। ऐसे में अखिलेश के लिए ये चुनावी समर आसान नहीं रहने वाला है।

युवा छवि ताकत

​अखिलेश की युवा छवि उनकी ताकत है। इसी के बूते वो इस मुश्किल दौर में भी कार्यकर्ताओं के चहेते बने हुए हैं। लेकिन परिवार की कलह इस चुनाव में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन सकती है।

वोटर भी असमंजस में

परिवार दो गुटों में बंटा है, अगर पार्टी भी बंट गयी तो वोटर असमंजस की हालत में होंगे, और चुनाव से ठीक पहले ऐसी हालत ठीक नहीं है। यूं तो अखिलेश और उनकी पार्टी की मुस्लिम और यादव वोट बैंक पर अच्छी पकड़ है लेकिन इस वोट बैंक का पूरा साथ तभी मिल सकता है जब पार्टी में फूट ना हो और वोटों का बंटवारा न हो। दरअसल अखिलेश के सत्ता संभालने के बाद,  सत्ता और संगठन के स्तर पर पार्टी में कई केंद्र बने जो समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी बनी यही खींचतान अब इतना बढ़ चुका है कि परिवार का कलह पार्टी पर हावी हो चुका है। 

कानून-व्यवस्था पर लगाम नहीं

​अखिलेश बीते कुछ सालों में विकास का चेहरा बन कर उभरे हैं, ये उनके हक में है, लेकिन पांच साल के अपने शासन में वो कानून व्यवस्था पर वैसी लगाम नहीं लगा सके जैसी उनसे उम्मीद थी। ये चुनाव में उनके खिलाफ जा सकता है 

बाहुबलियों का विरोध किया

​हांलाकि चुनाव से ठीक पहले अखिलेश ने बाहुबलियों को टिकट दिए जाने का विरोध किया उससे उनकी छवि चमकी है। जो उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। पिछले कुछ दिनों से पारिवार में जारी झगड़े के पीछे कानून व्यवस्था का सवाल भी छुपता जा रहा है, ये भी अखिलेश के हक में जा सकता है कि अखिलेश को युवाओं का साथ है,  उनका युवा संगठन मजबूत है। यही बड़ी वजह है कि अखिलेश पार्टी में ऐसे बगावती तेवर अपना पाए।

पुराने नेताओं से तालमेल की कमी

हांलाकि पुराने नेताओं से तालमेल की कमी भी दिखी है, जिससे चुनाव में नुकसान हो सकता है। पुराने नेताओं का तजुर्बा और वोट बैंक पर उनकी पकड़ का फायदा अखिलेश को नहीं मिल सकेगा। हांलाकि सियासी हलकों में चर्चा इस बात की भी है कि अखिलेश कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के वोटबैंक का भी फायदा अखिलेश को मिल सकता है।

2012 में 29 फीसदी वोट मिले थे

2012 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 29.13 फीसदी वोट पा कर 224 सीटें जीती थी। जबकि बीएसपी 25.91 फीसदी वोट पाकर सिर्फ 80 सीटों पर सिमट कर रह गयी थी। यानि सिर्फ चार फीसदी के वोट मार्जिन से 144 सीटों का फर्क आ गया था। ऐसे में अगर अखिलेश की तरफ कांग्रेस के वोटबैंक शिफ्ट हुए तो पार्टी में फूट की वजह से होने वाले नुकसान की कुछ भरपायी तो जरूर हो सकती है

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