नई दिल्ली. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार कांग्रेस पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कन्हैया कुमार आने वाली 28 सितंबर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लेंगे। आपको बता दें कि पिछले दिनों कन्हैया कुमार और कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच मुलाकात हुई थी, जिसके बाद से लगातार ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि वो कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
क्यों विचारधारा से समझौता कर रहे हैं कन्हैया?
वामपंथी विचारों से प्रेरित कन्हैया क्यों कांग्रेस पार्टी का दामन थामने जा रहे हैं इसको लेकर चर्चाएं जारी हैं। कन्हैया कुमार के करीबी लोगों को कहना है कि वो सीपीआई में घुटन महसूस कर रहे है। सूत्रों का कहना है कि कन्हैया बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण रोल निभाना चाहते हैं। कांग्रेस भी पिछले 3 दशक से बिहार में राजनीतिक रूप से हाशिए पर है। ऐसे में दोनों एक दूसरे के काम के साबित हो सकते हैं।बिहार में कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगे कन्हैया?
पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, जबकि उसके सहयोगी दलों राजद और सीपीआई(एमएल) ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। बिहार चुनाव में कांग्रेस पार्टी में को जहां 70 विधानसभा सीटों में से महज 19 नसीब हुई थीं, वहीं राजद ने जिन 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से वो आधी से ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही थी। गठबधंन का हिस्सा CPI(ML) भी 19 सीटों में से 12 विधानसभा सीटें जीतने में सफल रही थी।
कन्हैया की एंट्री से मिलेगी कांग्रेस को ताकत?
कांग्रेस पार्टी के जुड़े लोगों का कहना है कि कन्हैया कुमार के पार्टी में शामिल होने से निश्चित ही कांग्रेस को ताकत मिलेगी। पार्टी के नेताओं का मानना है कि पिछले दो सालों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद और प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेताओं ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी है, ऐसे में अगर कन्हैया कांग्रेस का दामन थामते हैं तो निश्चित ही पार्टी को बल मिलेगा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में सभी लोग कन्हैया के स्वागत के लिए पलके बिछाए तैयार खड़े हैं। बड़ी संख्या में पार्टी के नेताओं का ये भी मानना है कि कन्हैया कुमार अपने विवादास्पद अतीत की वजह से कांग्रेस के लिए बेहद नुकसानदायक भी साबित हो सकते हैं। पिछले साल दिसंबर में पार्टी के पटना कार्यालय में हंगामे के लिए भाकपा में भी, उन्हें इस साल की शुरुआत में एक हल्की अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा था।