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ट्रिपल तलाक़ नापसंद लेकिन फिर भी है वैध: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

तलाक़ और मुस्लिम सरियत का मामला एक बार फिर गरमा गया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि तीन तलाक़ वैध है हालंकि इस्लाम में इसे नापसंद माना जाता है।

Written by: India TV News Desk
Updated : September 11, 2017 7:00 IST
Muslim personal law board
Muslim personal law board

भोपाल: तलाक़ और मुस्लिम सरियत का मामला एक बार फिर गरमा गया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि तीन तलाक़ वैध है हालंकि इस्लाम में इसे नापसंद माना जाता है। बोर्ड का तर्क है कि मुस्लिम समुदाय में बिला वजह ट्पिपल तलाक़ से बचने के लिए बड़े पैमाने पर सुधारवादी कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।

शरीयत में किसी भी तरह का दख़़ल मंज़ूर नही

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की यहां रविवार को एक दिवसीय बैठक थी। बैठक में आरोप लगाया गया कि पर्सनल लॉ पर हमले का प्रयास किया जा रहा है जिसे  बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बोर्ड की वर्किंग कमेटी के सदस्य कमाल फ़ारुकी ने बताया कि बैठक में फैसला किया गया है कि शरीयत में किसी भी तरह का दख़़ल मंज़ूर नही किया जाएगा और मांग की गई कि संविधान में जो संरक्षण दूसरे धर्मो के लोगों को मिला है, वही संरक्षण मुसलमानों को भी मिलना चाहिए।

बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने की इस दलील पर नाख़ुशी ज़ाहिर की कि तीन तलाक संबंधी उन सभी प्रकरणों को असंवैधानिक घोषित किए जाए, जिनमें न्यायालय के हस्तक्षेप के बगैर विवाह समाप्त कर दिए गए है। बोर्ड ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर सीधा हमला माना है।

फ़ारुकी ने कहा कि तीन तलाक़ संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले के अध्ययन के लिए बोर्ड ने एक कमेटी बनाने का भी फैसला लिया है जो इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार सुधार संबंधी सुझाव भी बताएगी।

बाबरी मस्जिद मसले पर जल्दबाज़ी ठीक नहीं

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद मसले पर कहा कि इस पर किसी भी तरह से जल्दबाज़ी नहीं की जानी चाहिए। बोर्ड सचिव ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा कि चूंकि बाबरी मस्जिद मसला संपत्ति संबंधित है इसलिए इस मामले में फ़ैसले को लेकर जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। 

बोर्ड की सदस्य और महिला विंग की संयोजक असमा ज़ेहरा ने कहा कि तलाक के चंद मामलों का कोर्ट में जाने से यह मतलब नहीं है कि मज़हब के अंदर औरतों का उत्पीड़न हो रहा है। उन्होंने कहा कि अभी भी ज्यादातर मुसलिम औरतें शरीयत के साथ है।

ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फ़ैसले में एक बार में तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहकर अथवा किसी अन्य माध्यम से शादी तोड़ने के चलन को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया है।

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