नई दिल्ली: भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर राज्यसभा में आयोजित विशेष चर्चा के दौरान निर्दलीय सदस्य ए.वी. स्वामी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका को सार्वजनिक कर सदन में उस दौर की यादों को ताजा कर दिया।
उपसभापति पी जे कुरियन ने बोलने के लिए स्वामी का नाम पुकारने से पहले बताया कि वानर सेना के एक सदस्य स्वतंत्रता आंदोलन के अपने अनुभव को सदन में साझा करना चाहते हैं। इतना सुनते ही समूचे सदन की नजरें पीछे की कतार में बैठे स्वामी की ओर मुड़ गयीं।
स्वामी ने कहा कि 1942 में जब गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था उस समय वह इंदिरा गांधी द्वारा गठित वानर सेना के सदस्य थे। स्वामी ने बताया कि आंदोलन शुरू होने से महज एक साल पहले 12 साल की उम्र में वह वानर सेना में शामिल हुये थे। उड़ीसा के कोरापुट जिले में स्थित स्वामी का जन्मस्थान नवरंगपुर कस्बा भारत छोड़ो आंदोलन की गतिविधियों का केन्द्र बन गया था।
स्वामी ने बताया कि वानर सेना के बच्चों को आंदोलनकारियों की रणनीति से जुड़े पत्र आदि पहुंचाने का काम दिया जाता था। उस दौर की एक रोमांचक घटना को सदन में साझा करते हुये उन्होंने बताया कि आंदोलन की रणनीति से जुड़ा एक अहम पत्र ले जाते समय पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। पुलिस अफसर ने जब उनसे गंतव्य के बारे में पूछा तो उन्हें गांधी जी द्वारा वानर सेना के बच्चों को झूठ नहीं बोलने की शपथ याद आ गयी।
स्वामी ने बताया कि झूठ न बोलने की शपथ के कारण वह चुप रहे लेकिन वह इतना अधिक डर गये कि पुलिस अधिकारियों ने तरस खा कर उन्हें छोड़ दिया।
उपसभापति कुरियन ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले 88 वर्षीय स्वामी की सदन में बतौर राज्यसभा सदस्य मौजूदगी हम सभी के लिये गौरव की बात है। समूचे सदन ने स्वामी के इस अनुभव को सुनने के बाद हर्षध्वनि से उनका स्वागत किया। स्वामी साल 2012 से बतौर निर्दलीय सदस्य राज्यसभा में उड़ीसा का प्रतिनिधित्व कर रहे है।