श्रीनगर: पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को इस पर हैरानी जताई कि अगर सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत अफगानिस्तान में तालिबान से वार्ता करने की वकालत कर सकते हैं तो केंद्र जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों से बातचीत करने की पहल क्यों नहीं कर सकता।
अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा, ‘‘हम तालिबान के साथ वार्ता, तिब्बत और श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों की स्वायत्तता की वकालत करते हैं लेकिन साथ ही जम्मू कश्मीर में किसी संवाद या राजनीतिक पहल के अनिच्छुक हैं। इसलिए हमारी नीति है जैसा कि हम कहते हैं वैसा करो लेकिन जैसा हम करते हैं वैसा ना करो। तालिबान के लिए बातचीत, कश्मीर के लिए ऑपरेशन ऑल-आउट।’’
इससे पहले रावत ने रायसीना डायलॉग में अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया पर कहा कि तालिबान से बातचीत होनी चाहिए, लेकिन यह बिना किसी शर्त के होनी चाहिए।
महबूबा ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘अगर सेना प्रमुख तालिबान के साथ वार्ता की वकालत कर सकते हैं तो हमारे अपने लोगों की बात आने पर अलग मानदंड क्यों अपनाए जाते हैं?’’ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र को पाकिस्तान की ओर से बातचीत की पेशकश स्वीकार करनी चाहिए और राज्य में हिंसा को खत्म करने के लिए हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ भी वार्ता की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान के साथ शांति की पेशकश स्वीकार करिए, जम्मू कश्मीर में हिंसा का दुष्चक्र खत्म करने के लिए हुर्रियत और अन्य पक्षकारों के साथ वार्ता की पहल करिए।’’