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हरियाणा: राजनीतिक लिहाज से कैसा रहा 2019? एक साल में दो चुनाव और परिणाम बिल्कुल जुदा

हरियाणा में वर्ष 2019 में कुछ महीनों के अंतर पर दो चुनाव हुए और सत्तारूढ़ भाजपा के लिए दोनों के परिणाम बिल्कुल अलग रहे।

Written by: Bhasha
Published on: December 25, 2019 18:44 IST
हरियाणा में राजनीतिक लिहाज से कैसा रहा 2019?- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV हरियाणा में राजनीतिक लिहाज से कैसा रहा 2019?

चंडीगढ़: हरियाणा में वर्ष 2019 में कुछ महीनों के अंतर पर दो चुनाव हुए और सत्तारूढ़ भाजपा के लिए दोनों के परिणाम बिल्कुल अलग रहे। मई में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी जीत मिली थी। उसने राज्य की सभी 10 संसदीय सीटें जीती लेकिन अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में वह अपने दम पर बहुमत भी प्राप्त नहीं कर पाई। विधानसभा में भाजपा ने 90 में से 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था। लक्ष्य तो हासिल नहीं हुआ, अलबत्ता हरियाणा के आठ मंत्री चुनाव हार गए। चुनाव में जननायक जनता दल (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला किंगमेकर के रूप में उभरे। 

जेजेपी के साथ चुनाव बाद गठबंधन करके भाजपा ने दोबारा मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनाई। पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला के पड़पोते दुष्यंत चौटाला वर्ष 2018 में नेशनल लोक दल से अलग हो गए थे और उन्होंने जेजेपी बनाई थी। चुनाव परिणामों के लिहाज से कांग्रेस के लिए भी यह साल मिला जुला रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्य इकाई के प्रमुख अशोक तंवर और तीन बार के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा लोकसभा चुनाव हार गए। लेकिन, विधानसभा चुनाव का परिणाम कांग्रेस के लिए राहत लाया।

31 सीट जीतकर कांग्रेस दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इससे पहले उसके पास महज 17 सीट थीं। कांग्रेस सरकार बनाने का दावा पेश करने का विचार बना ही रही थी कि जेजेपी के 10 विधायकों ने भाजपा के साथ जाना चुना। विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले ही हरियाणा कांग्रेस में बड़ी उथल पुथल मची। भूपिंदर सिंह हुड्डा ने पार्टी छोड़ने की धमकी दी जिसके बाद उन्हें विधायक दल का नेता बना कर संतुष्ट किया गया। इसके बाद, अशोक तंवर की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया। इससे नाराज तंवर ने विधानसभा चुनाव से महज तीन हफ्ते पहले कांग्रेस छोड़ दी। 

लोकसभा चुनाव में इनेलो का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा, वह एक भी सीट नहीं जीती। विधानसभा चुनाव में भी अभय सिंह चौटाला को छोड़कर पार्टी का एक भी नेता चुनाव नहीं जीता। विधानसभा चुनाव आते-आते इनेलो के कई विधायक और बड़े नेता भाजपा, कांग्रेस या जेजेपी का दामन थाम चुके थे। वहीं, इस साल भूपेंद्र सिंह हुड्डा को केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना भी करना पड़ा। अगस्त में उनके खिलाफ कांग्रेस के द्वारा प्रवर्तित एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को पंचकुला में भूमि आवंटन में कथित अनियमितता को लेकर प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें मोतीलाल वोरा का भी नाम था। 

हरियाणा को खेलों में पदक और सम्मान दिलवाने वाले खिलाड़ी इस साल खट्टर सरकार से क्षुब्ध हो गए। दरअसल, खट्टर सरकार ने खिलाड़ियों को सम्मानित करने वाले राज्य स्तरीय एक कार्यक्रम को आयोजित नहीं करने और पुरस्कार की राशि सीधे उनके खातों में भेजने का फैसला लिया। सरकार का कहना था कि करीब तीन हजार खिलाड़ियों को सम्मान देना है और ऐसा एक दिन में करना संभव नहीं है। साल के अंत में राज्य सरकार ने गीता महोत्सव का आयोजन किया, जो अब एक सालाना आयोजन बन गया है। इस साल वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका भी खबरों में रहे। नवंबर में उनका 53वां स्थानांतरण हुआ।

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