कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन दिनों 7 दिन के भारत दौरे पर हैं। कनाडा की ट्रूडो सरकार पर खालिस्तानी अलगाववादियों के समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं। बुधवार को जस्टिन ट्रूडो ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका है। कमाल की बात यह है कि भारत के गुरुद्वारे में मत्था टेकने वाले ट्रूडो के अपने देश कनाडा के गुरुद्वारों में भारतीय अधिकारियों के प्रवेश पर बैन है। कनाडा में रह रहे सिखों में खालिस्तानी समर्थक प्रभावशाली संख्या में माने जाते हैं और उन्हीं की कोशिश के चलते इस साल की शुरुआत में ओंटारियो प्रांत के सिख समुदायों और 14 गुरुद्वारों में भारतीय अधिकारियों के प्रवेश पर रोक लगाने की खबर मीडिया में आई है।
सिर्फ कनाडा ही नहीं, अमेरिका के 96 गुरुद्वारों और ब्रिटेन के गुरुद्वारों में भी इसी तरह भारतीय अधिकारों के प्रवेश पर रोक की खबरें मीडिया में आ चुकी हैं। भारत के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। जिस तरह विदेशों में भारतीय अधिकारियों के गुरुद्वारों प्रवेश पर रोक के मामले बढ़ते जा रहे हैं, भारत को वहां की सरकारों को कठोर संदेश देने की सख्त जरूरत है। अगर कनाडाई प्रधानमंत्री होकर ट्रूडो स्वर्ण मंदिर, ताजमहल से लेकर जामा मस्जिद तक बिना किसी दिक्कत के जा सकते हैं तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह अपने देश में भी कट्टरपंथी ताकतों को भारत विरोधी भावना भड़काने से रोकें। कनाडा को खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन का केंद्र बनने से रोकना उनकी और उनकी सरकार की जिम्मेदारी बनती है।
साल 1971 में बांग्लादेश के अलग होने के बाद पाकिस्तान ने भारत से बदला लेने और सबक सिखाने के लिए पंजाब की तरफ ध्यान केंद्रित किया था। 70 के दशक के अंत और 80 के दशक से शुरू हुए पंजाब के अलगाववादी आंदोलन की आंच अभी भी रह-रह कर महसूस की जा सकती है। जस्टिन ट्रूडो को खालिस्तान समर्थकों पर नरम रुख रखने के लिए जाना जाता है भारत सरकार द्वारा उन्हें नजरअंदाज किए जाने के पीछे यही कारण बताया जा रहा है। सिर्फ भारत सरकार ही नहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी काफी ना-नुकुर के बाद जस्टिन ट्रूडो को मिलने को राजी हुए हैं। कैप्टन अमरिंदर ने जस्टिन से मिलकर ए कैटेगरी के 9 ऐसे समूहों और उनके सदस्यों की सूची उन्हें सौंपी है जो कनाडा से भारत और पंजाब विरोधी गतिविधियां चला रहे हैं।
पिछले साल पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर ने रक्षा मंत्री हरिजीत सज्जन को ‘खालिस्तानियों से सहानुभूति’ रखने वाला बताते हुए मिलने से इंकार कर दिया था। बड़ी संख्या में सिख समाज के लोग विदेश में रहते हैं इनमें कनाडा में सिख प्रभावशाली संख्या में वहां मौजूद है। विदेशों में रह रहे सिखों के बीच में खालिस्तानी आंदोलन के फिर भड़काने के कोशिश समय समय पर होती रहती है। सिर्फ अरुणाचल प्रदेश में किसी भारतीय मंत्री के जाने पर चीन अपनी आपत्ति दर्ज कराने से कभी नहीं चुकता तो भारत को भी अपनी अखंडता को सर्वोच्च मानते हुए भारतीयों के किसी भी गुरुद्वारे में प्रवेश पर रोक लगाने वाले देश को सख्ती से निपटना चाहिए।
(इस ब्लॉग के लेखक युवा पत्रकार अविनाश त्रिपाठी हैं)