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Flashback 2018: पंजाब की राजनीति, विवादों के बीच सिद्धू अपनी धुन में मस्त

सिद्धू 2018 में पंजाब की राजनीति के केंद्र में रहे और पाकिस्तान के लिए अपने नए प्रेम के चलते उन्होंने करीब पांच महीने तक राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह पाई, खासतौर से अपने साथी क्रिकेटर व पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान के पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : December 27, 2018 16:36 IST
Navjot Singh Sidhu
Navjot Singh Sidhu

चंडीगढ़: आप उन्हें पंसद करें या उनसे नफरत करें, मगर उनको नजरअंदाज नहीं कर सकते। किक्रेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्ध कभी विवादों से दूर नहीं रहे। मसला अच्छा हो या बुरा, उसके लिए वह अक्सर अखबारों व टीवी चैनलों की सुर्खियों में आ ही जाते हैं। सिद्धू 2018 में पंजाब की राजनीति के केंद्र में रहे और पाकिस्तान के लिए अपने नए प्रेम के चलते उन्होंने करीब पांच महीने तक राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह पाई, खासतौर से अपने साथी क्रिकेटर व पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान के पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद।

सिद्धू पर उनकी पूर्व पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (BJP) राजनीतिक हमले करती रही, यहां तक मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन पर तंज कसा और अगस्त में इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के साथ उनके गले मिलने पर केंद्रीय मंत्री द्वारा उन्हें देशद्रोही करार दिए जाने के बावजूद सिद्धू नहीं झुके।

हाल ही में चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में 70 से ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित करने के बाद अपनी आवाज खोने की कगार पर पहुंचे चुके सिद्धू ने पाकिस्तानी संबंधों पर उनके जुड़ाव को लेकर हमलावर हुए लोगों के खिलाफ आक्रामक रुख जारी रखा। निजी तौर पर उनके कुछ विरोधियों ने भी स्वीकार किया कि सिद्धू ने पड़ोसी देश के साथ खराब संबंधों की जटिल बाधाओं को पार करके करतारपुर गलियारा परियोजना को संभव बनाया, जिसकी मांग पिछले 70 वर्षो से सिख समुदाय करता रहा है। सिख समुदाय के लोग पाकिस्तान में करतारपुर स्थित सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के विश्राम स्थल पर प्रार्थना करने के लिए जाने के मकसद से गलियारे के निर्माण की मांग कर रहे थे।

अमरिंदर सिंह द्वारा गुरुद्वारे के लिए गलियारे को इजाजत देने की पाकिस्तान और विशेषकर उसकी सेना की असली मंशा पर बड़े सवाल उठाने के बावजूद सिद्धू सिख समुदाय के भीतर करतारपुर गलियारा परियोजना की साख बढ़ाने में सफल रहे। गुरुद्वारा भारत के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा से तीन से चार किलोमीटर दूर स्थित है।

केवल एक वाकये में ऐसा हुआ जब सिद्धू ने ज्यादा कुछ कहने से मना कर दिया, जब 19 अक्टूबर को अमृतसर में दशहरा के दौरान रावण का पुतला दहन देख रहे करीब 60 लोगों की जान चली गई थी। उनकी पत्नी नवजोत कौर उस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थीं। घटना के लिए मीडिया और राजनीतिक विरोधियों ने उन पर और नवजोत कौर पर निशाना साधा था। हालांकि, पंजाब सरकार की जांच में घटना के लिए सिद्धू दंपति की किसी भी भूमिका को सिरे से खारिज कर दिया गया।

पूरे साल सिद्धू के अपने साथी कैबिनेट मंत्रियों के साथ विवाद होते रहे और उन्होंने अधिकारियों को उनकी जगह दिखाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ा, जिसके चलते वे जब-तब विवादों का कारण बनते रहे। ऐसा कहा जाता है कि वह इस बात को लेकर निराश हैं क्योंकि जनता के बीच उनकी प्रसिद्धि के बावजूद पंजाब की सत्तारूढ़ कांग्रेस और राज्य सरकार से उन्हें वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार हैं।

सिद्धू ने हाल ही में हैदराबाद में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अमरिंदर सिंह के नेतृत्व पर सवाल उठाकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया था। इस विवाद के कारण कम से कम छह कैबिनेट मंत्रियों ने उनसे इस्तीफे की मांग की। विवाद तब थमा जब अमरिदर ने मसले को ज्यादा तरजीह नहीं दी और सिद्धू ने अपने बयान को पलटते हुए अमरिंदर को 'पिता तुल्य' बताया।

सिद्धू को समझना होगा कि राजनीति और कूटनीति टीवी रिएलिटी शो नहीं हैं। अगर वह पंजाब या राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए कोई बड़ा स्थान चाहते हैं तो उन्हें थोड़ी राजनीतिक कूटनीति सीखनी होगी।

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