नई दिल्ली. दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन चल रहा है। किसानों का ये आंदोलन मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में हैं। किसानों के इस आंदोलन पर सियासत भी शुरू हो गई है, तमाम राजनीतिक दलों ने सियासी रोटियां सेंकने के लिए अब किसानों द्वारा बुलाए गए बंद का समर्थन करने का ऐलान किया है। इन्हीं दलों में एनसीपी भी शामिल है। हालांकि एनसीपी चीफ शरद पवार के दो पुराने पत्र अब जमकर सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। ये पत्र उन्होंने कृषि कानूनों के समर्थन में बतौर देश का कृषि मंत्री रहते हुए शीला दीक्षित और शिवराज सिंह चौहान को लिखे थे।
इन पत्रों के वायरल होने के बाद एनसीपी ने बयान जारी कर सफाई दी है। एनसीपी ने कहा है कि Model APMC Act 2003 वाजपेयी सरकार द्वारा पेश किया गया था। हालांकि, उस समय कई राज्य इसे लागू करने के लिए अनिच्छुक थे। कृषि मंत्री के रूप में, पवार ने अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए सुझाव आमंत्रित करके राज्य कृषि विपणन बोर्डों के बीच व्यापक सहमति बनाने की कोशिश की थी। मॉडल एपीएमसी अधिनियम के अनुसार किसानों को लाभ विभिन्न राज्य सरकार को समझाया गया और कई सरकार इसे लागू करने के लिए आगे आईं।"
किसान आंदोलन को लेकर नौ दिसंबर को राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे शरद पवारकेंद्र के नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार नौ दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करेंगे। पार्टी ने रविवार को यह जानकारी दी। राकांपा के प्रवक्ता महेश तापसे ने कहा कि पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री पवार किसानों के प्रदर्शन के मद्देनजर राष्ट्रपति को देश के हालात से अवगत कराएंगे। राकांपा सूत्रों ने कहा कि पवार माकपा नेता सीताराम येचुरी, भाकपा नेता डी राजा तथा द्रमुक सांसद टीआर बालू के साथ दिल्ली जाएंगे। वे बुधवार को पांच बजे कोविंद से मुलाकात करेंगे।
कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डटे हजारों किसानों के प्रतिनिधियों ने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है, जिसे कई विपक्षी दलों को समर्थन हासिल हो चुका है। रविवार को राकांपा ने भी बंद को अपना समर्थन दे दिया। इससे पहले दिन में पवार ने केंद्र से कहा कि वह किसानों के प्रदर्शन को गंभीरता से ले क्योंकि यदि गतिरोध जारी रहता है तो आंदोलन केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशभर से लोग कृषकों के साथ खड़े हो जाएंगे। सितंबर में संसद के मानसून सत्र के दौरान कृषि विधेयकों को राज्यसभा में पेश किए जाने के दौरान राकांपा के सदस्य सदन छोड़कर चले गए थे।