भोपाल: मध्य प्रदेश में नए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की चर्चाओं को मुख्यमंत्री कमलनाथ के दिल्ली प्रवास ने एक बार फिर हवा देने का काम किया है। कयासबाजी तेज हो गई है और पार्टी के नेता जल्दी ही नए अध्यक्ष के नाम के ऐलान की उम्मीद लगा बैठे हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही अध्यक्ष पद को छोड़ने की पेशकश करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद भी वे पद छोड़ने की इच्छा जता चुके हैं। नए अध्यक्ष को लेकर पार्टी में लगातार मंथन चल रहा है।
इसी बीच, कमलनाथ ने शनिवार को दिल्ली में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात को नए अध्यक्ष के साथ ही राज्य में निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति से जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने राज्य का दौरा कर मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित कई बड़े नेताओं से मुलाकात की और नए अध्यक्ष के नाम को लेकर चर्चा भी की। बाबरिया ने दिल्ली लौटने के बाद पार्टी हाईकमान को अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंपी है। इसमें संभावित नए अध्यक्ष के नाम से लेकर संबंधितों की खूबियों और खामियों का भी जिक्र है, साथ ही बाबरिया ने अपनी राय हाईकमान को भी बता दी है।
सूत्रों का कहना है कि, पार्टी राज्य में एक ऐसे नेता को कमान सौंपना चाहती है, जिसे सभी बड़े नेता स्वीकार करें। यही कारण है कि कई नाम सामने आ रहे है, उनमें से एक के नाम पर अंतिम फैसला आसान नहीं हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि लगभग हर नाम पर दूसरा गुट विरोध दर्ज कराने को तैयार बैठा है।
नए प्रदेशाध्यक्ष की कतार में तमाम नेता हैं, मगर उनमें से सबसे बेहतर और सर्व स्वीकार्य नेता की खोज हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में तो वैसे कई नाम हैं इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ऊपर है। वहीं, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और कांतिलाल भूरिया इसके अलावा वर्तमान सरकार के मंत्री उमंग सिंगार, बाला बच्चन, कमलेश्वर पटेल, सज्जन वर्मा सहित कई और नाम भी दावेदारों की सूची में शामिल हैं।
राज्य में कांग्रेस का इतिहास गुटबाजी के बगैर पूरा नहीं होता, मगर प्रदेशाध्यक्ष की कमान कमलनाथ को सौंपे जाने के बाद से हालात बदले हैं। नेताओं ने एक-दूसरे पर सवाल उठाना बंद कर दिया है, मगर उनके करीबी एक दूसरे पर खुलकर आरोप लगाने में अभी भी पीछे नहीं है। यही कारण है कि नए अध्यक्ष के चयन में देरी हो रही है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान ने भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जल्दी पुनर्गठन की मांग की है। उनका मानना है कि पीसीसी का पुर्नगठन न होने से सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं बन पा रहा है। नतीजतन सरकार और आम लोगों के बीच भी दूरी बनी हुई है। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्री रामनिवास रावत ने पूर्णकालिक अध्यक्ष की पैरवी की है।
कांग्रेस के सूत्रों की माने तो पार्टी हाईकमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश की कमान सौंपना चाहता है और वह इसके लिए राज्य के प्रमुख बड़े नेताओं जिनमें मुख्य मंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित और कई नेता हैं जिनकी राय लेना चाहता है। ताकि यह निर्णय सर्वमान्य होने का संदेश कार्यकर्ताओं के बीच जाए।
राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र व्यास का मानना है कि कांग्रेस को राज्य में सत्ता मिल चुकी है, मगर उसे संगठन की मजबूती के लिए एक मजबूत नेता की जरूरत है। कमलनाथ ने डेढ़ साल में गुटबाजी पर लगाम कसते हुए पार्टी को बेहतर तरीके से चलाया है, लिहाजा हाईकमान भी यह चाहता है कि वह ऐसे नेता को कमान सौंपे जिसके सामने गुटबाजी की चुनौती न हो और वह संगठन को मजबूती से चलाए, यह उतना आसान नहीं है जितना सोच लेना होता है।
राज्य में कांग्रेस भले सत्ता में आ गई हो मगर संगठन स्तर पर कमजोरी बनी हुई है। यही कारण है कि पार्टी निचले स्तर पर संगठन को मजबूत करना चाहती है। संगठन को मजबूत करने में सत्ता की भी मदद मिलेगी, इसीलिए नया अध्यक्ष उसे ही बनाया जाएगा, जिसका कमलनाथ से बेहतर तालमेल होगा।