भोपाल: कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तारीफ करेंगे, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा। लेकिन शनिवार को दिग्विजय ने एक के बाद एक ट्वीट्स करते हुए संघ के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ की। दरअसल, दिग्विजय अपने ट्वीट्स के जरिए अपनी प्रतिबद्धताओं के बारे में बता रहे थे और साथ ही साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला भी बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि वह आखिरी सांस तक कांग्रेस में ही रहेंगे।
‘संघ की प्रतिबद्धता की प्रशंसा करता हूं’
सिंधिया के बीजेपी जॉइन करने पर दिग्विजय ने कहा, ‘मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज (क्षमा करें, क्योंकि मैं खुद सामंती पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं उन्हें ज्योतिरादित्य कहकर संबोधित नहीं करता) कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा देंगे और वह भी किसके लिए? राज्यसभा और मोदी शाह के अंतर्गत कैबिनेट में जगह? यह दुखद है क्योंकि मैंने कभी उनसे ऐसी उम्मीद नहीं की थी।’ दिग्विजय ने आगे कहा, ‘संघ/BJP से मेरी जरा भी सहमति नहीं है लेकिन विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की मैं प्रशंसा करता हूं।’
दिग्गी राजा ने किया राजमाता को याद
अपने ट्वीट्स में दिग्विजय ने ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया को भी याद किया। दिग्विजय ने कहा, ‘राजमाता विजया राजे सिंधिया, जिनके लिए मेरे मन में आज भी बहुत ज्यादा श्रद्धा और सम्मान है, चाहती थीं कि मैं 1970 में जनसंघ में शामिल हो जाऊं। मैं उस समय राघोगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था। लेकिन गुरु गोलवलकर की ‘बंच ऑफ थॉट्स’ पढ़ने और आरएसएस नेताओं से बातचीत करने के बाद मैंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया।’
दिग्गी ने संघ के संघर्ष पर भी किया ट्वीट
दिग्गी ने अपने ट्वीट्स में इस बात का भी जिक्र किया कि कैसे संघ ने दिल्ली की सत्ता में आने के लिए 1925 से 90 के दशक तक इंतजार किया, लेकिन अपनी विचारधारा से नहीं डिगा। उन्होंने लिखा कि अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए तमाम स्वयंसेवकों ने अपनी जिंदगी खबा ती और अपने परिवार को संघ के लिए काम करने पर लगा दिया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अब प्रचारक बदल चुके हैं और इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का उदाहरण दिया। उन्होंने किसी भी चीज को अपने पक्ष में भुना लेने की मोदी की काबिलियत की तारीफ की।
‘चाहता तो केंद्र में मंत्री बन जाता, लेकिन...’
दिग्विजय ने एक ट्वीट में कहा, 'मैं सत्ता से बाहर रहा और कांग्रेस पार्टी के लिए 2004 से 2014 तक काम किया, इस तथ्य के बावजूद कि मुझे मंत्रिमंडल में शामिल होने और राज्यसभा में जाने की पेशकश की गई थी। लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मैं अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से आसानी से लोकसभा जा सकता था लेकिन मैंने मना कर दिया और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। क्यों? क्योंकि मेरे लिए विश्वसनीयता और विचारधारा अधिक महत्वपूर्ण है जो दुर्भाग्य से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है। दुखद।'
‘इंसानियत का विलोम है हिंदुत्व’
'मैं एक ऐसे वातावरण में पला-बढ़ा हूं जहां मेरे पिता जो पूरी तरह नास्तिक थे और मेरी माँ की धर्म में गहरी आस्था थी। मेरे लिए मेरी आस्था सनातन धर्म में है।' उन्होंने कहा कि यह सार्वभौमिक भाईचारे में यकीन करती है न कि हिंदुत्व की विचारधारा की तरह सांप्रदायिक है। दिग्विजय ने कहा कि इसके बाद उन्होंने 1981 में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी से दीक्षा ली। उन्होंने कहा कि मेरे लिए मेरा धर्म 'इंसानियत' है जो कि 'हिंदुत्व' का विलोम है।