नयी दिल्ली: भाजपा नेता निर्मला सीतारमण ने विजय माल्या से मुलाकात के मुद्दे पर वित्त मंत्री अरुण जेटली से इस्तीफे की कांग्रेस की मांग को एक मंशा के तहत किया गया बताया और कहा कि यह संप्रग (यूपीए) सरकार के समय हुए ‘सांठगांठ और पक्षपात’ से ध्यान हटाने की रणनीति है। रक्षा मंत्री ने पीटीआई को बताया कि संसद के गलियारे में माल्या की जेटली से छोटी सी मुलाकात को मुद्दा बनाया जा रहा है और इस मुद्दे पर आये जवाबों ने इस तथ्य को और प्रबल बना दिया है कि इस बातचीत के कोई मायने नहीं थे।
सीतारमण ने कहा कि जेटली पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि कैसे माल्या ने संसद सदस्य के नाते अपने विशेषाधिकारों का दुरूपयोग वित्त मंत्री से बातचीत करने के लिए किया। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य पी एल पुनिया ने दावा किया है कि उन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में जेटली को माल्या के साथ बैठे देखा था और इसे साबित करने के लिए सीसीटीवी फुटेज भी होंगे। इस संदर्भ में पूछे गये प्रश्न पर सीतारमण ने कहा कि क्या फुटेज में ऑडियो रिकार्डिंग भी होगी। उन्होंने जेटली के खिलाफ कांग्रेस के इल्जामों पर कहा, ‘‘यह पहले ही पूरी तरह एक मंशा के तहत लगाया गया आरोप लगता है।’’
कांग्रेस पर पलटवार करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार में माल्या की मदद के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक को पत्र लिखे गये थे। उन्होंने कहा, ‘‘एक कंपनी का नाम लेते हुए पक्षपात कैसे किया गया। किसके समय में पक्षपात और सांठगांठ की गयी और केंद्रीय बैंक को सुझाव दिये गये तथा बैंकों को इस डिफॉल्टर को लोन देने के लिए लिखित निर्देश दिये गये।’’
सीतारमण ने व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा कि कांग्रेस की उस रणनीति को देखिए जिससे वह इस मुद्दे से ध्यान हटाना चाहती है। क्या कुछ मिनटों की उस बातचीत से माल्या को देश छोड़ने में मदद मिल गयी या इस वजह से सारे लोन (संप्रग सरकार के दौरान) दिये गये थे। उन्होंने कहा कि ऐसे बोगस खातों के नाम पर कई लोन दिये गये जिनकी कर्ज लेने की कोई क्षमता नहीं थी। भाजपा नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने कानून बनाया है जिससे रिण नहीं चुकाने वालों की संपत्ति को जब्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार ने कुछ कानून तो पारित किये लेकिन नियम कभी नहीं लागू किये।