नई दिल्ली. बिहार में लोकजनशक्ति पार्टी में बवाल मचा हुआ है। चिराग पासवान को अपने ही चाचा की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। चिराग के चाचा पशुपति पारस पासवान के समर्थन में पार्टी के 5 सांसद हैं जबकि चिराग पासवान हर तरफ से अकेले नजर आ रहे हैं। पिता रामविलास के निधन के बाद चिराग को इन परस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, ऐसा उन्होंने सोचा भी न होगा। लोकजनशक्ति पार्टी में मचे द्वंद के बीच चिराग पासवान से बातचीत की इंडिया टीवी ने।
इंडिया टीवी के अजय कुमार से बातचीत में चिराग पासवान ने कहा कि इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में संख्या जरूर विधायकों और सांसदों से आंकी जाती है, उससे ही वेटेज पता चलता है लेकिन पूरी पार्टी का जब आप जिक्र कर रहे हैं तब मेरे लिए पार्टी में सांसदों और विधायकों से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरी पार्टी के पदाधिकारी हैं, मेरी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, मेरी पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य हैं, मेरे स्टेट बोर्ड के सदस्य हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कम से कम 75 लोग होते हैं, इसमें मुझे खुशी इस बात की है कि इसमें लगभग 95 फीसदी लोग आज की तारीख में भी मेरे और हमारे नेता राम विलास पासवान के विचारों के साथ खड़े हैं। 66 लोगों के एफिडेविट मेरे पास हैं, ये वो लोग हैं जो पिताजी के समय से ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। 35 राज्यों में से 33 राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष मेरे साथ हैं। मुझे खुशी है कि पूरी पार्टी मेरे साथ है। ये धोखा मेरे साथ नहीं, राम विलास पासवान जी के साथ हुआ।
चिराग पासवान ने आगे कहा कि आज वो जिनके साथ जाकर के खड़े हुए हैं, उन्होंने रामविलास पासवान जी के रहते हुए भी उनकी पार्टी को तोड़ा। हमारी पार्टी पहली बार नहीं टूटी है। 2005 में बिहार में दो बार विधानसभा के चुनाव हुए थे। फरवरी वाल में 29 विधायक जीत करके के आए थे, तब भी जेडीयू ने पार्टी को तोड़ने का काम किया। उसके बाद नवबंर में जितने जीते उनको भी तोड़ा। उसके बाद एमएलसी को भी तोड़ा। हमारे मौजूदा विधायक को भी उन्होंने तोड़ने का काम किया। रामविलास पासवान की विचारधारा को समाप्त करने के लिए दलित-महादलित बनाने का भी काम किया। कोई दलित चेहरा आगे न बढ़ जाए इसके लिए जेडीयू के नेता काम करते आए हैं।
चिराग से जब पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी चाचा के विरोध के बारे में सपने में भी सोचा था तो उन्होंने कहा कि दुख-तकलीफ भी इसी बात की है, इसीलिए किसी और से शिकायत भी नहीं कर सकते। किस मुंह से किसी और से शिकायत करूं। कैसे बोलूं की जेडीयू ने मेरी पार्टी को तोड़ा। जब मेरे अपनों ने ही मुझे धोखा दिया, भले मेरे चाचा हों, मेरा छोटा भाई हो, जब उन्होंने ही मुझे धोखा दिया। मेरे छोटे चाचा का निधन हो गया था, पापा के निधन के बाद चाचा ही ऐसे व्यक्ति थे जो परिवार में मुखिया की जगह थे। चाहे पारिवारिक हो या पार्टी की गतिविधियां हो हर चीज में उनके मार्गदर्शन के लिए देखा करता था। पापा के निधन के बाद परिवार को एकसाथ लेकर चलने की जिम्मेदारी उनकी थी। मुझे अभीतक समझ नहीं आया कि क्यों मुझे इस तरह से अकेले छोड़ा गया।
जेडीयू की भूमिका के सवाल पर चिराग ने कहा कि जो लोग आज पार्टी छोड़ गए हैं उनकी महत्वकांक्षाएं पूरी हुई या नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा। मुझे नहीं पता कि किसको क्या प्रलोभन दिया गया, कौन कितना महत्वकांक्षी था या किस कारण उन्होंने पार्टी छोड़ी। इतना जरूर जानता हूं कि वो उनके साथ जाकर खड़े हुए जिन्होंने हमारे नेता को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। राज्यसभा जब सांसद बनने की बात तो तब मैंने पूरा प्रकरण सबके सामने रखा था कि किस तरह से नीतिश कुमार ने मेरे पिता को अपमानित किया, उन्हें मजबूर किया कि वो मदद के लिए गुहार लगाने के लिए उनके निवास तक जाएं जबकि राज्यसभा की सीट उस वक्त के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सार्वजनिक तौर पर डिक्लेयर की थी कि रामविलास पासवान जी के लिए जाएगी, जो पहली आएगी। ये कोई एक पहला लहमा नहीं है, ये निरंतरता में हो रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को हुए नुकसान को लेकर नीतीश कुमार की नाराजगी के सवाल पर चिराग पासवान ने कहा कि उनकी नाराजगी सर-आंखों पर, जायज है उनकी नाराजगी क्योंकि यकीनन LJP और चिराग पासवान की वजह से ही वो तीसरे नंबर की पार्टी हैं। कहीं न कहीं ये जनादेश स्पष्ट तौर पर दे दिया था कि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ये जनादेश नहीं था, होता तो कम से कम वो तीसरे नंबर की पार्टी नहीं मानते। ये उसी का बदला लिया जा रहा है। तकलीफ इस बात की है कि वो परिवार को इसमें जोड़ रहे हैं।
पीएम मोदी के हनुमान के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर हनुमान को भी मदद मांगनी पड़े राम से तो काहे के हनुमान और काहे के राम। फिलहाल मेरी प्राथमिकताएं अलग हैं। किसी से मदद की अब अपेक्षा नहीं रखता हूं। ईमानदारी से बोलूं, जब परिवार ही साथ छोड़ देता है तो उसके बाद आपकी उम्मीदें समाप्त हो जाती हैं। फिर आपको पता है कि ये आपके अपना अकेले का संघर्ष है। अगर मुझे स्वार्थ की राजनीति करनी होती तो मैं 15 सीटों पर चुनाव लड़ता। दो मंत्री बिहार सरकार में होते, पिताजी के निधन के बाद मैं मंत्री होता। कहीं कोई दिक्कत नहीं होती। मेरी विचारधारा की लड़ाई है