नई दिल्ली: पंजाब के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी सियासी हलचल तेज हो गई है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव दिल्ली पहुंच गए हैं। यहां वे कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात कर सकते हैं। अपने इस दौरे को लेकर टीएस सिंह देव ने सफाई देते हुए कहा कि दिल्ली आने का कार्यक्रम पहले से था और पारिवारिक वजह से आ रहा हूं। हालांकि माना जा रहा है कि यहां वे राहुल गांधी से मिल सकते हैं।
दरअसल, 2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में बहुमत से सरकार बनाई थी इसके बाद मुख्यमंत्री की रेस में भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव और ताम्रध्वज साहू के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा थी। हालांकि, आलाकमान ने उस समय भूपेश बघेल को सीएम बनाया था। जबकि टीएस सिंह देव को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया गया था। उस समय कहा जा रहा था कि पार्टी ने दोनों नेताओं से 2.5 साल साल तक सीएम रहने का वादा किया था। हालांकि, सिंह देव ने इस फॉर्मूले की बात को नकार दिया। वहीं, बघेल का कहना था कि पार्टी कहेगी तो वे इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं।
वहीं, आपको बता दें कि पंजाब में तेजी से बदलते घटनाक्रम का कांग्रेस पर व्यापक असर होने की आशंका है क्योंकि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों को आशंका है कि अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में जिस "अप्रिय" तरीके से बाहर किया गया वह अन्य राज्यों में असंतोष का आधार बन जाएगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव और प्रियंका चतुर्वेदी सहित कई पार्टी नेताओं के बाहर निकलने के बाद से कांग्रेस में असंतोष के सुर मुखर होते जा रहे हैं।
कांग्रेस नेता अब विभिन्न गुटों में बंटे राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पंजाब के घटनाक्रम के संभावित प्रभाव को लेकर “देखों और इंतजार करो” की नीति अपना रहे हैं। पंजाब के अलावा केवल यही दो राज्य हैं, जहां पार्टी अपने दम पर सत्ता में है। पार्टी में बेचैनी को दर्शाते हुए, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को उम्मीद जताई कि अमरिंदर सिंह “ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो” और जोर देकर कहा कि हर कांग्रेसी को देश के हित में सोचना चाहिए।
कांग्रेस ने पिछले साल राजस्थान में सचिन पायलट द्वारा किए गए विद्रोह का डटकर मुकाबला किया और गहलोत के नेतृत्व वाली अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रही, हालांकि राज्य इकाई में अब भी असंतोष व्याप्त है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पंजाब के घटनाक्रम का अन्य जगहों पर असर होने की संभावना है। पार्टी के भीतर मतभेद बढ़ सकते हैं तथा इससे पार्टी और कमजोर होगी।”