भारत की राजनीति में विरासत की लड़ाई कोई नई बात नहीं है। सियासी कुनबों में राजनीतिक विरासत को लेकर नूराकुश्ती आम बात है, लेकिन यह लड़ाई तब खास हो जाती है जब परिवार से बाहर का कोई शख्स उस राजनीतिक विरासत पर घोषित-अघोषित अपना दावा ठोकने लगता है। हाल-फिलहाल बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ कुछ ऐसे ही घटनाक्रम सध रहे हैं। मायावती ने भले ही अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर सार्वजनिक मंच पर कभी कुछ नहीं कहा हो, लेकिन उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर समय-समय पर कयास लगाए जाते रहे हैं। मायावती के जन्मदिन पर अखिलेश यादव से मुलाकात के दौरान मायावती के भाई और बीएसपी के पूर्व उपाध्यक्ष आनंद सिंह के बेटे आकाश आनंद की मौजूदगी से कयासों को फिर बल मिल गया है। सवाल उठता है-क्या आकाश आनंद की मौजूदगी संयोग है या इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं?
सियासी गलियारों में कान लगाएं तो इसके राजनीतिक निहितार्थ साफ सुनाई पड़ जाएंगे। चर्चाओं की माने तो आकाश आनंद के जरिए मायावती एकसाथ कई हित साधने में लगी हैं। मायावती इस बात को भली-भांति जानती हैं कि पिछले कई चुनावों में बीएसपी की हार के पीछे बड़ी वजह युवाओं का पार्टी से न जुड़ना रहा है। ऐसे में आकाश आनंद को सामने लाने के पीछे मायावती की दलित युवाओं को पार्टी की ओर लुभाने की मंशा है। साथ ही आकाश आनंद के जरिए मायावती दलित युवाओं के बीच भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद रावण के उभार को भी कुंद करना चाहती हैं।
गौरतलब है कि बीएसपी में कोई युवा फ्रंटल संगठन नहीं है जबकि आगामी लोकसभा चुनाव में युवाओं की अहम भूमिका देखी जा रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया के दौर में सोशल मीडिया पर मायावती की सक्रियता नाम मात्र की ही है, जबकि विपक्षी दल और खुद चंद्रशेखर रावण सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता लगातार बनाए हुए है। ऐसे वक्त में सोशल मीडिया के जरिए पार्टी के संदेश को युवाओं तक पहुंचाना और युवाओं को जोड़ने के मद्देनजर मायावती को आकाश आनंद जैसे अपने की सख्त जरूरत थी।
लंदन से एमबीए करके लौटे आकाश आनंद युवा हैं, मुखर हैं, सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं साथ ही राजनीतिक और विचाराधारा के स्तर पर लचीले हैं, जो हर लिहाज से बीएसपी और मायावती के विरासत के लिए फिट बैठते हैं। चंद्रशेखर रावण भले ही बयानों में मायावती को बुआ कहते हों और खुद को बीएसपी का हितचिंतक दिखाने की कोशिश करते हों, लेकिन मायावती का उन पर आंख तरेरना यह साफ बताता है कि चंद्रशेखर रावण के उभार को मायावती अपने लिए खतरा मानती हैं।
सियासी पंडित भी मानते हैं कि मायावती को कहीं ना कहीं डर जरूर होगा कि रावण उनकी विरासत में सेंध न लगा दे। ऐसे में आकाश को आगे करना रणनीति का हिस्सा होना स्वाभाविक है। वैसे तो मायावती राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ हैं और इसको लेकर विपक्षी पार्टियों पर निशाना भी साधती रही हैं लेकिन उनका झुकाव शुरू से ही अपने भाई आनंद सिंह से देखा गया है। पूर्व में आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसा अहम पद तो सौंपा, लेकिन कहा कि वह कभी विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेगा।
गौरतलब है कि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने भी पहले मायावती को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ही बनाया था। हालांकि, आनंद सिंह इन दिनों संगठन में किसी पद पर नहीं हैं लेकिन उनके बेटे आकाश पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि आकाश मायावती के साथ पहली बार दिखे हों, सहारनपुर हिंसा के बाद मायावती के दौरे में आकाश साथ-साथ रहे। मेरठ में बीएसपी की महादलित रैली के मंच पर भी आकाश को मायावती के साथ देखा गया। बीएसपी के नेता बताते हैं कि पिछले एक साल में हुए पार्टी पदाधिकारियों की लखनऊ-दिल्ली की बैठक में भी आकाश सक्रिय रहे हैं। कई बैठकों में तो मायावती ने पदाधिकारियों से आकाश का परिचय भी कराया।
मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर पहले भी खबरें उड़ती रही हैं। साल 2014 में मायावती ने जब राज्यसभा के उम्मीद्वार के तौर पर आजमगढ़ के रहने वाले राजाराम का नाम घोषित किया, तब उन्हें मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर देखा गया। राजाराम साल 2008 के बाद दूसरी बार राज्यसभा सांसद बनने से पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कई राज्यों के प्रभारी भी रहे।
मालूम हो कि वर्ष 2007 में बहुमत की सरकार बनाने के बाद की रैली में मायावती ने एलान किया था कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी सजातीय, उम्र में उनसे करीब 15 साल छोटा होगा लेकिन उनके परिवार का नहीं होगा। इस पर उस समय राजाराम को लेकर अफवाह भी उड़ी कि कहीं राजाराम ही तो उनके उत्तराधिकारी नहीं हैं। समय के साथ राजराम की खबर अफवाह साबित हुई।
एक बड़ा तबका इस बात को भी स्वीकार करता है कि विरासत की लड़ाई से मायावती भली-भांति परिचित हैं। कांशीराम की राजनीतिक विरासत को लेकर उनको भी राज बहादुर, जंग बहादुर पटेल, दीनानाथ भास्कर जैसे दिग्गज नेताओं से दो-दो हाथ करना पड़ा था। ऐसे में मायावती ऐसा रणनीति जरूर अपनाना चाहेंगी कि विरासत जस-की-तस अपनों की हाथों में जाए।
(ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं)