नई दिल्ली: शिमला में प्रियंका गांधी को जमीन खरीदने के लिए मंजूरी देने में कांग्रेस के साथ-साथ वहां की बीजेपी सरकार ने भी मदद की थी। यह भी खुलासा हुआ है कि प्रियंका की जमीन खरीदने वाली फाइल को बीजेपी सरकार ने भी बिना किसी ऑब्जेक्शन के क्लीयर कर दिया।
प्रियंका गांधी ने जमीन की खरीदारी से जुडी जानकारी और दस्तावेज सार्वजनिक किए जाने को लेकर सुरक्षा कारणों से विरोध जताया था लेकिन इंडिया टीवी के पास इस जमीन सौदे के कुछ दस्तावेज़ मौजूद हैं। इन दस्तावेज़ों से पता चलेगा कि प्रियंका ने दो बार जमीन खरीदी और दोनों ही बार हिमाचल प्रदेश की सरकार ने उन्हें अपनी मर्जी से जमीन खरीदने की इजाजत दी, जहां आज प्रियंका गांधी वाड्रा ने घर बना लिया है।
प्रियंका गांधी अभी तक 'सूचना के अधिकार' के तहत अपनी जमीन से जुड़े क़ागजातों को सुरक्षा के आधार पर सार्वजनिक न किए जाने का स्टैंड लेती रही हैं। लेकिन अब जबकि हिमाचल सूचना आयोग ने इस सारी जानकारी को दस दिनों के भीतर जारी करने के आदेश दे दिए हैं तो प्रशासन के पास अब इस जानकारी को जारी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
प्रियंका ने दो-दो बार हिमाचल में खरीदी जमीन नियमों के मुताबिक बाहरी लोगों को खेती वाली जमीन खरीदने की छूट नहीं। 2011 में धूमल सरकार ने प्रियंका के जमीन सौदे पर कोई विरोध नही जताया था।
मकान और बागबानी के लिये दी गयी थी मंजूरी :
प्रियंका गांधी को हिमाचल में जमीन खरीदने की इजाजत रिहायशी मकान बनाने और बागबानी करने के उद्देश्य से दी गयी है। हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व कानून की धारा 118 के तहत किसी गैर कृषक को राज्य में जब जमीन खरीदने की इजाजत दी जाती है तो उसके साथ जमीन खरीदने के उद्देश्य का उल्लेख करना जरूरी होता है। इसी अनुमति के साथ ही यह शर्त भी लगा दी जाती है कि जिस उद्देश्य के लिए जमीन खरीदी गयी है, उसे दो सालों के भीतर पूरा कर लिया जाये। ऐसा न करने की स्थिति में खरीदी गयी जमीन को सरकारी कब्जे में ले लिए जाने का प्रावधान है।
खड़ा हो सकता है नया विवाद :
जानकारों का कहना है कि सूचना के अधिकार के तहत प्रियंका की जमीन की जानकारी के सार्वजनिक होने के बाद इस मामले से जुड़े तमाम पहलू सामने आ जाएंगे। ऐसे में इस बात की संभावना भी रहेगी कि सरकार द्वारा जमीन खरीदने के लिए दी गयी अनुमतियों में खामियां निकाल कर इस सारे मामले को लेकर कोई नया विवाद खड़ा हो जाये। खासतौर पर यह बात तो उठ ही सकती है कि जब आम आदमी को गैर हिमाचली व गैर कृषक होने की स्थिति में राज्य में जमीन खरीदने की अनुमति लेने से पहले कई सरकारी आपत्तियों का जवाब देना पड़ता है तो इस मामले में दोनों सरकारों के समय में कोई ऑब्जेक्शन क्यों नहीं लगाया गया।