नयी दिल्ली: कुछ वर्गों की ओर से इन संकेतों के बीच कि लोकसभा का चुनाव अगले वर्ष के शुरू में 10-11 विधानसभाओं के साथ कराने को लेकर प्रयास किये जा सकते हैं, भाजपा ने ‘‘खर्च पर अंकुश’’ के लिए एकसाथ चुनाव कराने पर जोर दिया जिसके लिए भाजपा शासित तीन राज्यों का चुनाव विलंबित किया जा सकता है और 2019 में बाद में होने वाले कुछ राज्यों के चुनाव पहले कराये जा सकते हैं। भाजपा सूत्रों ने यद्यपि कहा कि राज्यों का चुनाव विलंबित करने या पहले कराने को लेकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इस विचार पर पार्टी के भीतर औपचारिक रूप से चर्चा नहीं की गई है क्योंकि ऐसे कदमों की संवैधानिक वैधता को ध्यान में रखना होगा।
ऐसे में जब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ विधानसभाओं का कार्यकाल अगले वर्ष जनवरी में समाप्त हो रहा है, पार्टी के नेता ने संकेत दिया कि भाजपा शासित इन राज्यों के लिए कुछ समय के लिए राज्यपाल शासन की संभावना तलाशी जा सकती है ताकि वहां विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के शुरू में लोकसभा चुनाव के साथ हों। उन्होंने यद्यपि स्पष्ट किया कि अभी कोई ठोस प्रस्ताव तैयार नहीं किया गया है।
कांग्रेस शासित मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल भी इस वर्ष दिसम्बर में समाप्त हो रहा है। पूर्व लोकसभा महासचिव एवं संवैधानिक विशेषज्ञ पी डी टी अचार्य ने यद्यपि उन राज्यों में राज्यपाल शासन लगाने की विधिक वैधता पर सवाल उठाया जहां विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले होने हैं।
वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने बताया कि कमीशन साथ चुनाव कराने के लिए अचानक से अतिरिक्त मशीनों का ऑर्डर नहीं दे सकता है, इसके लिए लीगल फ्रेमवर्क की जरूरत होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो कानूनी तौर पर एक साथ चुनाव को मान्यता मिलने तक चुनाव आयोग कोई अतिरिक्त मशीन का ऑर्डर नहीं दे सकता है। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, यदि लोकसभा और कई राज्यों में चुनाव एकसाथ होते हैं तो 34 लाख बैलट यूनिट, 26 लाख कंट्रोल यूनिट और 27 लाख वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी।