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राहुल ने मोदी सरकार पर निशाना साधने के चक्कर में अपनी ही मनमोहन सरकार को कोसा!

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सेना की महिला अधिकारियों को तीन महीने के भीतर कमीशन प्रदान करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सोमवार को दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत में जो दलील दी वह देश की हर महिला का अपमान है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: February 17, 2020 20:02 IST
Manmohan Singh and Rahul Gandhi- India TV Hindi
Manmohan Singh and Rahul Gandhi

नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सेना की महिला अधिकारियों को तीन महीने के भीतर कमीशन प्रदान करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सोमवार को दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत में जो दलील दी वह देश की हर महिला का अपमान है। गांधी ने ट्वीट कर कहा, ''सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह दलील देकर हर महिला का अपमान किया है कि महिला सैन्य अधिकारी कमान मुख्यालय में नियुक्ति पाने या स्थायी सेवा की हकदार नहीं हैं क्योंकि वे पुरुषों के मुकाबले कमतर होती हैं।''

उन्होंने कहा, ''मैं भाजपा सरकार को गलत साबित करने और खड़े होने के लिए भारत की महिलाओं को बधाई देता हूं।" लेकिन राहुल गांधी मोदी सरकार पर निशाना साधने के चक्कर में यह भूल गए कि यह पूरा मामला उनकी पिछली मनमोहन सिंह सरकार के दौर का है। मनमोहन सिंह सरकार ने 6 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने सेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन दिए जाने का फैसला सुनाया था।

Rahul Gandhi Tweet

Rahul Gandhi Tweet

वहीं, इस मामले पर भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने कहा, ''सच्चाई ये है कि 2006 में ये केस पहले दिल्ली HC में चला। 2010 में जो फैसला आया उसे सरकार ने चुनौती दी थी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय केंद्र में किसकी सरकार थी।''

दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह सेना की उन सभी महिला अधिकारियों को तीन महीने के भीतर स्थायी कमीशन प्रदान करे जिन्होंने इसके लिए आवेदन किया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि महिलाओं को कमान मुख्यालय पर नियुक्ति दिए जाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन का हवाला देते हुए सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन नहीं देने की बात कही गई थी।

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