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Bihar Polls: चुनावी मुद्दों की तलाश में हैं राजनीतिक दल

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का कहना है कि उनकी तैयारी पूरी है। चुनाव मैदान में उतरने के लिए वे पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन,

IANS
Updated : September 10, 2015 8:15 IST
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Bihar Polls: चुनावी मुद्दों की तलाश में हैं राजनीतिक दल

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का कहना है कि उनकी तैयारी पूरी है। चुनाव मैदान में उतरने के लिए वे पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन, लाख टके का सवाल यह है कि इस चुनाव में मुद्दा क्या होगा?

बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में आम लोग जहां क्षेत्रीय समस्याओं को अपने स्तर पर चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हैं वहीं कई दल अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।

बिहार में जातीय समीकरण के आधार पर जोड़-तोड की राजनीति कोई नई बात नहीं है। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्वच्छ छवि और विकास, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के मुख्य चुनावी मुद्दे थे।

इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हुई हैं। मित्र और विरोधी बदल गए हैं। जद (यू) जहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में है वहीं राजग में भाजपा के साथ लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) शामिल हैं।

राजनीति के जानकार सुरेन्द्र किशोर का मानना है कि इस चुनाव में मोदी सरकार का भ्रष्टाचार से कोई समझौता न करने का दावा राजग के लिए खास मुद्दा हो सकता है। राजग के नेता भ्रष्टाचार मुक्त बिहार का मुद्दा चुनाव में उठा सकते हैं। कह सकते हैं कि अगर बिहार में राजग की सरकार बनी तो वह भी साफ -सुथरी होगी।

राजद-जद (यू) गठबंधन भी नीतीश की स्वच्छ छवि को आगे रखकर चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में यह तय सा लग रहा है कि गठबंधन नीतीश की छवि को चुनाव में भुनाएगा।

किशोर भी मानते हैं कि नीतीश कुमार की साफ -सुथरी छवि, सुशासन और विकास के बेहतर रिकार्ड को गठबंधन जरूर सामने रखेगा। लेकिन, लालू के साथ होने के कारण यह मुद्दा बन पाएगा, यह देखने वाली बात होगी।

उन्होंने कहा कि यह भी तय है कि लालू-नीतीश गठबंधन केन्द्र सरकार द्वारा राज्य की मदद न करने का आरोप लगाते हुए इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करेगा। राजग पहले से ही बिहार को सवा लाख करोड़ के पैकेज को भुना रहा है। नीतीश भी जवाब में यह दावा करने से नहीं चूक रहे हैं कि मोदी सरकार ने पुरानी मदद को ही नया बताकर पेश किया है।

नीतीश लोकसभा चुनाव में किए गए वादे पूरे न होने की बात कह कर राजग पर हमला बोलते नजर आ सकते हैं।

किशोर कहते हैं कि राजग यह मुद्दा चुनाव मैदान में जरूर उठाता नजर आएगा कि नीतीश अगर बिहार में 'जंगलराज' के लिए चर्चित लालू प्रसाद की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो अच्छी सरकार कैसे दे पाएंगे?

राजग के नेता विकास के लिए 'जिसकी सरकार केंद्र में उसी की राज्य में हो तो बेहतर' का तुरुप का पत्ता फेंकते भी नजर आ सकते हैं।

अभी तक जो परिदृश्य उभर कर सामने आया है उसमें यही लग रहा है कि चुनाव में विकास सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।

इधर बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले ज्ञानेश्वर कहते हैं कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने गांधी मैदान में स्वाभिमान रैली में मंडल की वापसी की बात कहकर बता दिया है कि जाति के आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण का प्रयास किया जाएगा। जातीय गणित को बिहार में नकारा नहीं जा सकता।

राजद का कहना है कि भाजपा, यहां तक कि प्रधानमंत्री यदुवंशियों की बात कर जातिवाद फैला रहे हैं। राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे कहते हैं कि गरीबों और पिछड़ों की बात करना जातीय राजनीति नहीं है।

मोदी और नीतीश का आपसी मनमुटाव भी इस चुनाव में मुद्दा बन सकता है। प्रधानमंत्री द्वारा नीतीश के 'डीएनए' के संदर्भ में दिए गए बयान पर पहले से ही काफी राजनीति हो रही है।

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