Monday, December 23, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राजनीति
  4. Bihar Polls: भाजपा का जनाधार बढ़ा, कोई मुख्यमंत्री नहीं बना

Bihar Polls: भाजपा का जनाधार बढ़ा, कोई मुख्यमंत्री नहीं बना

पटना: बिहार में पहले जनसंघ, फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सियासी सफर काफी सुखद रहा है। भाजपा बिहार की सत्ता में भागीदार भी बनी, लेकिन कभी भाजपा का कोई नेता मुख्यमंत्री पद नहीं पा

IANS
Updated : September 18, 2015 13:45 IST
भाजपा का जनाधार बढ़ा,...
भाजपा का जनाधार बढ़ा, कोई मुख्यमंत्री नहीं बना

पटना: बिहार में पहले जनसंघ, फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सियासी सफर काफी सुखद रहा है। भाजपा बिहार की सत्ता में भागीदार भी बनी, लेकिन कभी भाजपा का कोई नेता मुख्यमंत्री पद नहीं पा सका। इस विधानसभा चुनाव में 'ओपीनियन पोल' को झुठलाते हुए अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की जीत होती है तो तय है कि भाजपा का ही कोई नेता मुख्यमंत्री पद पर काबिज होगा। सीट बंटवारे से नाखुश राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को मनाने में जुटे राजग ने हालांकि अभी तक मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।

वर्ष 1962 में जनसंघ के मात्र तीन विधायक जीते थे, वर्तमान में भाजपा के 91 विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 16़ 46 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था, जो अब तक के चुनावी राजनीति में इस पार्टी का सबसे अधिक मत प्रतिशत था।

गौरतलब है कि भाजपा का सियासी ग्राफ हर चुनाव में बढ़ता गया है। बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव कहते हैं, "भाजपा प्रारंभ से ही विकास की राजनीति पर विश्वास करती है। बिहार की राजनीति जातीय ध्रुव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यही कारण है कि भाजपा को मतदाताओं ने पसंद किया।"

वर्ष 1962 में एक दशक के संघर्ष के बाद बिहार विधानसभा में पहली बार भाजपा (जनसंघ) के तीन उम्मीदवारों ने सदन की चौखट को पार कर सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज की। इस दौर में कांग्रेस की लोकप्रियता चरम पर थी और वही पार्टियां कांग्रेस के मुकाबले खड़ी हो पाई थीं, जिन्होंने सामाजिक असमानता का मुद्दा उठाया था।

भाजपा ने 20 वर्षो तक अविभाजित बिहार में सफर तय किया और इस दौरान कांग्रेस के मजबूत माने जाने वाले आदिवासियों के वोट बैंक में सेंध लगा ली और इन इलाकों में भाजपा की जमीन मजबूत होती गई।झारखंड के पूर्व मंत्री बैद्यनाथ राम कहते हैं कि भाजपा की पकड़ झारखंड (छोटानागपुर, संथाल परगना) के क्षेत्र में प्रारंभ से ही रही है। इन इलाकों में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती गई और भाजपा ने सामाजिक परिवर्तन और विकास का सहारा लिया।

भाजपा ने वर्ष 1967 में 272 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 26 सीटों पर जीत दर्ज की। इसमें अधिकांश सीटें आदिवासी क्षेत्रों की ही रही थी। 1969 में भाजपा ने 34 सीटें जीती, परंतु वर्ष 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में 25 सीटों पर ही भाजपा के उम्मीदवार विजयी हो सके। उस समय भाजपा जनसंघ के रूप में जानी जाती थी। गैर-कांग्रेसी दलों के बड़े राजनीतिक प्रयोग के तौर पर जनता पार्टी के विफल होने के बाद 1980 में जनसंघ भाजपा के रूप में अस्तित्व में आया।

भाजपा ने 1980 में हुए चुनाव में 21 सीटों पर विजय पताका लहराई, लेकिन इसके अगले ही चुनाव में भाजपा केवल 16 सीटें ही जीत सकी। 1990 के चुनाव में भाजपा ने 39 सीटें जीत ली और 1995 में हुए चुनाव में 41 सीटों पर जीत दर्ज कर अपने विधायकों की संख्या में इजाफा किया।

अकेले दम पर सरकार नहीं बनाने की स्थिति तक पहुंचने पर भाजपा ने गठबंधन की राजनीति प्रारंभ की। बिहार में समता पार्टी के साथ मिलकर भाजपा ने 2000 के चुनाव में 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 67 सीटें अपने खाते में कर लीं। इस दौरान बिहार विभाजन ने भाजपा के 32 विधायकों को झारखंड भेज दिया, लिहाजा झारखंड में भाजपा को लाभ हुआ, मगर बिहार में नुकसान हुआ और भाजपा के पास बिहार में 35 विधायक ही रह गए।

झारखंड के अलग होने के बाद फरवरी 2005 के चुनाव में भाजपा ने जनता दल (युनाइटेड) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी और 37 सीटों पर तथा अक्टूबर में हुए चुनाव में 55 सीटों पर जीत दर्ज की। इस जीत ने भाजपा को सत्ता में भी भागीदार बना दिया। सीटों के इजाफा का यह सिलसिला 2010 में भी जारी रहा और भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें अपने खाते में कर लीं।

पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी कहते हैं, "छद्म धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी विचारधाराओं के अंतर्विरोध और मुख्यमंत्री नीतीश के पहले साथ और अब दुराव से भाजपा को ताकत मिली है।"

बिहार के इस चुनाव में भाजपा ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के साथ राजग के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की है।

राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि भाजपा गठबंधन और सत्ताधारी गठबंधन में कांटे की टक्कर की उम्मीद है, लेकिन पिछले चुनाव से अधिक सीटें भाजपा के खाते में जरूर आएंगी। उनका कहना है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'चेहरे' पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। आम लोगों में मोदी की प्रतिष्ठा सत्ता संभालने के बाद बढ़ी नहीं है तो घटी भी नहीं है।

इस चुनाव में भाजपा ने 160 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Politics News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement