उनका कहना है कि ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसका अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलना तय है।
जद (यू) के प्रवक्ता अजय आलोक इस मामले पर बहुत खुलकर तो कुछ नहीं बोलते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से बिहार में कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बिहार अब विकास की ओर बढ़ चला है।
जद (यू) और राजद भले ही ओवैसी को खारिज कर रहे हों, लेकिन उनके मुस्लिम वोट बैंक में कुछ सेंध लगना तय है। जदयू भले ही बिहार में लड़ाई महागठबंधन और राजग के बीच बताए, पर ओवैसी के उम्मीदवारों को मिले मत महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे।
ओवैसी के मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतारने का कुछ हद तक फायदा भाजपा को मिलेगा। यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे, लेकिन जो भी वोट मिलेंगे, वे जद (यू) और राजद के खाते के ही होंगे।
बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले सुरेंद्र किशोर जद (यू) की बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, "बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन में कांटे की टक्कर मानी जा रही है, ऐसे में सभी मुस्लिम मतदाता न सही, परंतु अधिकांश मुस्लिम मतदाता ओवैसी के साथ जरूर होगा। ऐसे में महागठबंधन को नुकसान होना तय है।" वे कहते हैं कि ओवैसी की किशनगंज की रैली इसका प्रमाण है कि उस रैली में बहुत भीड़ जुटी थी।
किशोर दूसरे शब्दों में कहते हैं कि ओवैसी के बिहार में प्रवेश से राजग को उसी तरह फायदा पहुंचेगा, जैसे महाराष्ट्र चुनाव में हुआ था। वे कहते हैं, "महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में ओवैसी फैक्टर अपना रंग दिखा चुका है। कांटे के इन मुकाबलों में औवैसी की पार्टी ने दो सीटें ही जीतीं, लेकिन नुकसान किसे पहुंचाया, यह हर कोई जानता है।"
जद (यू) के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा की रणनीति के सवाल पर तो कुछ नहीं बोलते हैं, लेकिन राजद के कई नेता इसके तार दिल्ली से जुड़े होने की बात कहते हैं।वहीं, भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि बिहार के अल्पसंख्यक मतदाता राजग के साथ हैं। पहले भी भाजपा के प्रत्याशी सीमांचल क्षेत्रों में विजयी होते रहे हैं और इस चुनाव में भी होंगे।