पटना: बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मांग का कांग्रेस द्वारा समर्थन करने के एक दिन बाद जनता दल यूनाइटेड ने कांग्रेस से ही सवाल पूछ लिया। नीतीश की अगुवाई वाली पार्टी ने कांग्रेस से शुक्रवार को पूछा कि राष्ट्रीय पार्टी तब जरूरी कदम उठाने में असफल क्यों रही जब वह एक दशक तक केंद्र की सत्ता में थी। बिहार के लिए कांग्रेस के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसको लेकर आलोचना की थी कि उन्होंने इस सप्ताह के शुरू में राजधानी दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में कुमार द्वारा बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करने की मांग उठाने पर उसे नजरंदाज किया।
गोहिल ने कहा था कि वह निजी तौर पर बिहार के लिए विशेष दर्जा और विशेष पैकेज के पक्ष में हैं और यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो गरीब और सघन जनसंख्या वाले इस राज्य को सभी संभव मदद प्रदान करेगी जो प्रतिवर्ष सूखे और बाढ़ का सामना करता है। गत वर्ष महागठबंधन टूटने के बाद जदयू ने जहां गठबंधन सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिला लिया, वहीं 2 पार्टियां राजद और कांग्रेस एकसाथ विपक्ष में हैं। JDU के प्रवक्ता अजय आलोक ने गोहिल के बयान पर कहा, ‘कांग्रेस 2004 से 2014 तक सत्ता में रही। उसने तब बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया? नीतीश कुमार यह मांग 2005 में मुख्यमंत्री बनने से पहले से उठा रहे हैं। राज्य में सत्ता में आने के बाद से वह इस मांग को और जोरदार तरीके से उठा रहे हैं।’
आलोक एक अन्य टिप्पणी में परोक्ष रूप से कांग्रेस और भाजपा पर निशाना साधते प्रतीत हुए। उन्होंने कहा कि बड़ी पार्टियों के साथ यह बड़ी अजीब बात है। वे सत्ता से बाहर होने पर विशेष दर्जे का वादा करती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपना वादा भूल जाती हैं। इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार से काटकर झारखंड बनने के बाद बिहार को विशेष दर्जा नहीं मिलने के लिए कुमार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने दावा किया कि बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग करते हुए एक अनुरोध भेजा था, तब वाजपेयी ने मुद्दे पर गौर करने के लिए कुमार के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था ।
उस समय की राबड़ी देवी सरकार में मंत्री रहे मांझी ने आरोप लगाया कि समिति की एक भी बैठक नहीं हुई। कुमार चूंकि उस समय राज्य में सत्ता में नहीं थे, उन्हें यह विचार राजनीतिक रूप से लाभकारी नहीं लगा और उन्होंने वाजपेयी सरकार के सत्ता से हटने तक पैर खींचने का निर्णय किया।