नई दिल्ली: बिहार में महागठबंधन की महा-जीत के पीछे दिमाग़ है प्रशांत किशोर का जो 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार थे। दिसंबर, 2014 में उन्होंने मोदी का दामन छोड़कर नीतीश कुमार की मदद शुरू की, उनके मोदी खेमा छोड़ने की वजह अमित शाह से मिली उपेक्षा बताई जाती है।
प्रशांत किशोर की टीम ने वही सब किया जो अमित शाह की टीम पटना में कर रही थी - बूथ स्तर तक के आंकड़ों का विश्लेषण, मतदाताओं को आकर्षित करने वाले अभियान, स्वयंसेवकों का प्रबंधन और सोशल मीडिया पर साथी जुटाना।
प्रशांत किशोर बलिया के रहने वाले हैं और संयुक्त राष्ट्र के हेल्थ मिशन के तौर पर अफ्रीका में अपनी शानदार नौकरी छोड़कर आए थे। वो और उनके कुछ दोस्तों ने तय किया कि देश के राजनीतिक माहौल में कुछ करना चाहिए और फिर जन्म हुआ सीएजी। ये वो प्लेटफॉर्म था जिससे शुरू हुआ था मोदी का चुनावी अभियान।
400 लोगों से लैस है प्रशांत की टीम
प्रशांत ने नीतीश के प्रचार अभियान को हाईटेक बनाने के लिए 400 लोगों की टीम तैयार की थी। ये टीम जदयू कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देकर बिहार के हर क्षेत्र में भेजी गई थी। प्रशांत का लक्ष्य हर घर तक दस्तक, गांव-गांव में जाना, वहां के मुद्दों को समझना, नीतीश के काम को बताना, वोटरों के मन को टटोलना और फिर उसके अनुरूप जनता के सामने नीतीश की क्षवि का बखान करना था।
कौन हैं प्रशांत किशोर ?
संयूक्त राष्ट्र की शानदार नौकरी छोड़कर आए प्रशांत, ‘सिटिजेंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ की शुरुआत की थी और 2011 में मोदी को गुजरात से दिल्ली पहुंचाने का काम शुरू किया था। 2014 के मोदी प्रचार के दौरान प्रशांत ने सोशल मीडिया के रास्ते मोदी को देश के लोगों से जोड़ने का काम किया और गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में अहम ‘रोल’ निभाया।
डिजीटल तरीके से किया प्रचार
2014 की ही तर्ज पर प्रशांत ने नीतीश के बिहार चुनाव को ‘डिजीटल टच’ दिया। इसके लिए उन्होंने तरह-तरह की योजनाएं तैयार की थीं, जिसमें मुख्य कार्यक्रम, पर्चे पर चर्चा, नाश्ते पर चर्चा, और हर घर दस्तक थी। इतना ही नहीं उन्होंने नीतीश कुमार के फेसबुक पेज पर “नीतीश कनेक्ट” के नाम से ऑनलाइन जनता दरबार भी शुरू करवाया। यहां लोगों की समस्याएं सुनी जातीं, फिर उनके मोबाइल नंबर तलाशे जाते हैं फिर उनके नंबरों पर नीतीश के आवाज में रिकॉर्डिंग भेजी जाती।