नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि भाजपा के बड़े नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आदि पर आपराधिक साजिश का मामला चलेगा। अब एक सवाल अहम है कि क्या इस फैसले से लालकृष्ण आडवाणी के राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी पर विराम लग गया है। कानूनी जानकारों की मानें तो राष्ट्रपति पद की उम्मदवारी में इससे कोई कानूनी अड़चन नहीं है लेकिन मामला अब सिर्फ नैतिकता का है।(भाजपा के पूर्व मंत्री की बेटी ने इंटरनेट पर मचाई सनसनी)
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि जहां तक कानून का सवाल है तो कानून में कहीं भी ऐसा नहीं है कि जिसके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस चल रहा हो वह चुनाव नहीं लड़ सकता। वैसे भी संविधान के बेसिक रूल यह है कि हर व्यक्ति कानून के सामने तब तक निर्दोष है जब तक कि वह दोषी करार नहीं दिया जाता। ऐसे में इन नेताओं के खिलाफ जो भी आरोप हैं, अभी ट्रायल का विषय हैं और ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी हैं या नहीं। ऐसे में कानूनी तौर पर चुनाव लड़ने को लेकर कोई बार नहीं है।
इससे पहले एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं एक बैठक में अगले राष्ट्रपति के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता का नाम आगे किया था। सूत्रों के मुताबिक गुजरात के सोमनाथ में हुई एक बैठक के दौरान पीएम मोदी ने आडवाणी का नाम आगे किया। बैठक में पीएम मोदी ने कथित रूप से कहा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी के लिए राष्ट्रपति का पद उनकी तरफ से 'गुरुदक्षिणा' होगी। इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केशूभाई पटेल और लालकृष्ण आडवाणी उपस्थित थे।
गौरतलब है कि सोमनाथ से ही मोदी का नेशनल करियर शुरु हुआ था। 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा शुरू की थी, तब उन्होंने अपने सारथी के रूप में मोदी को प्रोजेक्ट किया था। यहीं से मोदी की नेशनल पॉलिटिक्स में एंट्री हुई थी। मोदी को गुजरात का सीएम बनवाने में भी आडवाणी का अहम रोल था। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मोदी से जब अटल बिहारी वाजपेयी नाराज हुए थे, तो उस वक्त भी आडवाणी ने मोदी का बचाव किया था।
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