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अशोक गहलोत को लेकर कांग्रेस में बनी आम सहमति या बनी रहेगी यथास्थिति?

पिछले साल नेतृत्व के मुद्दे पर टकराव के बाद सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया ताकि पार्टी में यथास्थिति बनी रहे। उसके बाद से नए नेतृत्व का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है। 

Written by: IANS
Published : August 23, 2020 18:44 IST
Rajasthan Ashok gehlot sachin pilot congress latest update । Rajasthan: अशोक गहलोत को लेकर कांग्रेस
Image Source : PTI अशोक गहलोत को लेकर कांग्रेस में बनी आम सहमति या बनी रहेगी यथास्थिति?

नई दिल्ली. राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में बगावत झेल चुकी 'दिशाविहीन' कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर से नेतृत्व का मुद्दा चर्चाओं में है। पिछले चुनाव के बाद से पार्टी ऑटो पायलट मोड पर चल रही है। पार्टी के कई नेता ये सवाल पूछ रहे हैं कि पार्टी का बॉस कौन है - सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा? कोई स्पष्टता नहीं होने से कांग्रेस नेता अब खुल कर नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर सवाल उठा रहे हैं।

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पिछले साल नेतृत्व के मुद्दे पर टकराव के बाद सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया ताकि पार्टी में यथास्थिति बनी रहे। उसके बाद से नए नेतृत्व का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है। वहीं, संभावित उम्मीदवार को लेकर अनौपचारिक रूप स पार्टी के अंदर बातचीत होती रही, लेकिन हुआ कुछ नहीं। क्या इस बार भी ऐसा ही होगा? क्या फिर पार्टी में यथास्थिति बनी रहेगी?

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पिछली बार चर्चा थी कि पार्टी में एक कार्यकारी अध्यक्ष होगा और क्षेत्रीय स्तर पर उपाध्यक्ष होंगे जो पार्टी में जान फूंकने का काम करेंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि पार्टी 'फैमिली फस्ट' सोच का शिकार हो गई।

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कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए जो नाम चल रहे हैं, उनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी नाम शामिल है जो सचिन पायलट की बगावत झेल चुके हैं। गहलोत के पास संगठन का अनुभव भी है। इसके अलावा कमलनाथ हैं, जनकी अग्निपरीक्षा मध्यप्रदेश में होने वाले उपचुनाव में होगी। रेस में पिछली लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, हरियाणा के भूपिंदर हुड्डा और मनीष तिवारी भी हैं।

जानकारों का मानना है कि पार्टी में अब गैर गांधी परिवार के नेता के अध्यक्ष पद बनने का वक्त आ गया है। ये बात इससे भी साफ हो जाती है कि राहुल गांधी ने ही 2019 चुनाव में हार के बाद इसके लिए मांग की थी। पार्टी के संगठन को मजबूत करना और चुनाव के जरिए पार्टी के पदों पर नियुक्ति एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए गहलोत की क्षमता को नकारा नहीं जा सकता। गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने तक पार्टी के महासचिव (संगठन) थे।

अगर गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो सचिन पायलट के लिए राजस्थान में रास्ता साफ हो सकता है। गहलोत को अहमद पटेल और राहुल गांधी दोनों नेताओं का समर्थन प्राप्त है और वो एक सबकी सहमति से बनने वाले अध्यक्ष हो सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ और यथा स्थिति बनी रही तो 'फैमिली फस्ट' वाली सोच फिर से हावी हो सकती है। आने वाले समय में बिहार में चुनाव हैं उसके बाद पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में मतदान। देश की सबसे पुरानी पार्टी दिशाहीन फिलहाल बनी हुई है और के रल, पंजाब और असम को छोड़ कर देश के अन्य भागों में इसकी उपस्थिति न के बराबर है।

लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना भी उतना ही जरूरी है। लेकिन राहुल गांधी के अध्यक्ष पद बनने से इनकार करने के बाद कांग्रेस पार्टी 'सस्पेंडेंड एनीमेशन' में है। अब वक्त आ गया है कि पार्टी खुद अपने अंदर लोकतंत्र को जीवित करे और 'फैमिली फस्ट' की मानसिकता से बाहर निकले। अगर इस साल भी ऐसा ही हुआ, जैसा पिछले साल हुआ था तो पार्टी और कमजोर हो सकती है।

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