नयी दिल्ली: दिल्ली में बंपर जीत के बाद अब केजरीवाल के शपथ ग्रहण का हर किसी को इंतजार है। अरविंद केजरीवाल ने एलजी अनिल बैजल से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। केजरीवाल 16 फरवरी को तीसरी बार दिल्ली के सीएम पद की शपथ लेंगे लेकिन लगातार तीसरी बार प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि उनको ‘राष्ट्रीय नेता’ के रूप में उभरने में अभी वक्त लगेगा।
विशेषज्ञों की राय है कि केजरीवाल को अपने आप को राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर आधार बनाने की जरूरत होगी। अभी आम आदमी पार्टी को निर्वाचन आयोग द्वारा प्रादेशिक पार्टी की मान्यता प्राप्त है। वह 2017 में पंजाब में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी। हालांकि उसकी राष्ट्रीय आकांक्षाओं को तब झटका लगा जब गोवा चुनाव तथा पिछले दो लोकसभा चुनावों में उसे असफलता हाथ लगी।
उसने 2014 में पंजाब में चार लोकसभा सीटें जीती और 2019 में महज एक जबकि दिल्ली के मतदाताओं ने दोनों बार लोकसभा चुनावों में उसे नकार दिया। केजरीवाल ने 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें तीन लाख से अधिक वोटों से हार का स्वाद चखना पड़ा था।
दिल्ली में भाजपा के हाथों 2017 के नगर निगम चुनावों में हार के बाद आप की रणनीति में बदलाव देखा गया और उसने फिर से राष्ट्रीय राजधानी में विकास पर ध्यान देना शुरू कर दिया। राजनीतिक विश्लेषक और जेएनयू में प्रोफेसर संजय पांडेय ने कहा, ‘‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी, चूंकि यह स्थानीय चुनाव है लेकिन क्या वह अखिल भारतीय स्तर पर इसे दोहरा सकते हैं, यह कहना मुश्किल होगा। उनकी पार्टी के पास कोई ठोस आधार या बुनियादी ढांचा नहीं है। यह अभी परिपक्व नहीं है।’’
जेएनयू प्रोफेसर कमल चिनॉय ने कहा कि भारतीय राज व्यवस्था बहुत जटिल है जहां लोगों की अलग-अलग राय होती है। उन्होंने कहा, ‘‘अरविंद को अखिल भारतीय नेता बनने में वक्त लगेगा लेकिन उन्होंने जो किया वह दिखाता है कि लोगों को जो चाहिए वह देकर तथा उन्हें सशक्त बनाकर अलग तरह की बहस शुरू की जा सकती है और यह महत्वपूर्ण है। उनका कद बढ़ेगा लेकिन राष्ट्रीय नेता बनने में वक्त लगेगा।’’
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्यों में से एक जगदीप छोकर ने कहा कि आप को राष्ट्रीय स्तर पर जाने से पहले काफी कुछ करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर जाना बहुत अलग स्तर की गतिविधि है। पिछली बार राष्ट्रीय चुनावों में वे करीब 400 सीटों पर लड़े लेकिन उन्हें इसका अंदाजा तक नहीं था कि उन्होंने किन लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है।’’