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सरकार की कश्मीर नीति 'जोर-जबरदस्ती' वाली नहीं, सत्याग्रह के जरिए फिदायीन से नहीं निपटा जा सकता: जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की केंद्र की नीति का समर्थन करते हुए कहा कि कश्मीर में आम नागरिकों के मानवाधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : June 22, 2018 16:30 IST
Arun Jatiley facebook post
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नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की केंद्र की नीति का समर्थन करते हुए कहा कि कश्मीर में आम नागरिकों के मानवाधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि किसी फिदायीन से सत्याग्रह के जरिए नहीं निपटा जा सकता। जेटली ने अपने पोस्ट में मानवाधिकार संगठनों पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने अपने लेख में भारत में फैले माओवाद, अलगाववाद और आतंकवाद पर पूरा विस्तार से लिखा है।

अपने पोस्ट में उन्होंने कश्मीर का जिक्र करते हुए लिखा कि एक चुनी हुई सरकार और जनता के साथ संवाद, आम कश्मीरियों के साथ मानवीय पहल ही भारत का अंतिम उद्देश्य है इससे कुछ लोग असहमत हो सकते हैं। लेकिन भारत की संप्रभुता और अपने नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा करना सर्वोपरि है। जेटली ने कहा कि एक जुमला चल रहा है कश्मीर में जोर-जबर्दस्ती की नीति अपनाई जा रही है।

उन्होंने कहा कि एक हत्यारे के साथ निपटना कानून-व्यवस्था का मसला है। इसके राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं किया जा सकता है। एक फिदायीन जो मरने के लिए तैयार है उसके सामने सत्याग्रह की पेशकश कर मामले को निपटाया नहीं जा सकता। जब वो मरने मारने के लिए तैयार हो तो सुरक्षाबल उससे यह नहीं कह सकते कि चलो टेबल पर बैठो और हमारे साथ बातचीत करो। इसलिए घाटी के आम लोगों की रक्षा के लिए हमारी नीति होनी चाहिए जिससे कि वे आतंक के डर से आजादी पाएं। यह जोर-जबर्द्स्ती की नीति नहीं बल्कि कानून का राज है। जेटली ने कहा कि कश्मीर और छत्तीसगढ़ में कुछ लोगों ने मानवाधिकार के नाम को ही बदनाम करने का काम किया है। इनके अंतरराष्ट्रीय सहयोगी भी इनके अलग नहीं हैं। हमारी नीति है कि आतंकवादियों से प्रत्येक भारतीय के मानवाधिकार की रक्षा हो चाहे वे ट्राइबल हो या कश्मीरी।

वित्त मंत्री जेटली ने अपने पोस्ट में लिखा है कि इन दिनों दो तरह की विचारधारा का समूह विद्रोह और आतंकवाद की गतिविधियों में संलग्न है। एक तो जेहादी और अलगाववादी ताकतें हैं जो हमारे पश्चिमी पड़ोसी द्वारा प्रशिक्षित किए जाते हैं और आर्थिक मदद पाते हैं। इनका मुख्य मकसद भारतीय राज्यों में वैमनस्य फैलाना है। ये देश के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं मगर जम्मू-कश्मीर में इनका खासा प्रभाव है। कुछ स्थानीय युवा भी उनके साथ जा मिले हैं। दूसरा समूह माओवादी विद्रोहियों का है। पहले से मध्य भारत में कुछ जनजातिय जिलों तक सीमित थे लेकिन उनके विचार के समर्थक देश के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। दोनों समूह जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं और लोकतंत्र से घृणा करते हैं। 

निर्देष नागरिकों की सुरक्षा के लिए पूरा देश इस इलाके में सुरक्षाबलों को भेजकर इसकी बड़ी कीमत चुका रहा है। सुरक्षाबल के कई जवान और अधिकारी शहीद हुए। कितनी बार मानवाधिकार संगठन के लोग असहाय नागरिकों और देशभक्त सुरक्षाकर्मियों के पक्ष में खड़े हुए। 

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