नई दिल्ली: वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश की नई सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक चलते हुए पिछली तेलुगू देशम पार्टी (TDP) सरकार के फैसले को पलट दिया है और केंद्रीय एजेंसियों को छापे और जांच करने की अनुमति दे दी है। इससे आने वाले दिनों में पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और उनके परिवार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
तेदेपा सरकार ने पिछले साल नवंबर में एक आदेश पारित कर सामान्य सहमति वापस ले ली थी और राज्य में जांच करने की केंद्रीय एजेंसी के अधिकार पर अंकुश लगा दिया था। सीबीआई और सभी एजेंसियों को राज्य सरकारों द्वारा सामान्य सहमति नियमित रूप से छह महीने से एक वर्ष तक की अवधि के लिए दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के तहत दी जाती है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो में उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, एजेंसी आठ मामलों में जांच कर सकती है, जहां राज्य में 30,000 करोड़ रुपये के सौदे शामिल हैं। सूत्रों ने संकेत दिया कि पिछले साल सितंबर में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. श्रवण कुमार द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कथित भ्रष्टाचार के लिए नायडू और उनके बेटे नारा लोकेश के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई थी।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि नायडू और लोकेश भ्रष्टाचार के मामलों में 21,000 करोड़ रुपये के निवेश के नाम पर कंपनियों के साथ फर्जी समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने में शामिल थे। नायडू के बेटे लोकेश ने मई 2013 में राजनीतिक में कदम रखा था। यह आरोप लगाया जाता है कि लोकेश आंध्र प्रदेश में बहुत सक्रिय थे और निवेश के नाम पर विभिन्न कंपनियों के साथ अधिकांश समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करते थे।
यहां तक कि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने भी वर्ष 2017 में लोकेश के खिलाफ सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने आंध्र प्रदेश में 80 एकड़ में फैली सरकारी जमीन हड़प ली। सीबीआई ने शिकायत को स्वीकार कर लिया था, लेकिन पार्टी से जांच के लिए अदालत का निर्देश लेने के लिए कहा, क्योंकि विचाराधीन भूमि आंध्र प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग की थी। यहां तक कि लोकेश की पत्नी नारा ब्राह्मणी भी 2011 में सीबीआई के शिकंजे में आ गई थी, क्योंकि एजेंसी ने एम्मार प्रॉपर्टीज में विला खरीदने के संबंध में उन्हें नोटिस भेजा था।
सूत्रों ने बताया कि नायडू की महत्वाकांक्षी पोलावरम परियोजना भी केंद्रीय एजेंसियों के दायरे में आने की संभावना है, क्योंकि परियोजना की अनुमानित लागत 16,010 करोड़ रुपये से बढ़कर 58,319.06 करोड़ रुपये हो गई है। आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती का निर्माण भी निगरानी के तहत है, क्योंकि यह आरोप लगाया गया है कि शहर के निर्माण के लिए लैंड पूलिंग स्कीम के तहत लगभग 33,000 एकड़ भूमि का अधिग्रहण विभिन्न तरीकों से किया गया था।
28 दिसंबर, 2014 को अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी घोषित किया गया था। जांच एजेंसियों के सूत्रों ने कहा कि विशाखापत्तनम में भी एक लाख एकड़ से अधिक भूमि से संबंधित रिकॉर्ड गायब हो गए हैं।