नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सियासत के लिए आज बहुत बड़ा दिन है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आज शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के घर जा रहे हैं। अमित शाह का दौरा इसलिए अहम है क्योंकि 1989 में पहली बार बीजेपी से गठबंधन करने वाली शिवसेना ने 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी से अलग रहकर लड़ने का ऐलान किया है लेकिन बीजेपी दोस्ती में पड़ी दरार का दूर करना चाहती है। बीजेपी और शिवसेना के रिश्तों में दरार की शुरुआत 2014 में ही हो चुकी थी। समय के साथ ये दरार और गहरी होती गई और हाल के दिनों में खटास इतनी बढ़ गईं कि बीजेपी के ख़िलाफ़ शिवसेना विपक्ष से भी ज्यादा हमलावर नज़र आई।
आज की मीटिंग ये तय करेगी कि बीजेपी-शिवसेना के रिश्तों पर पड़ी बर्फ पिघलेगी या दूरियां और बढ़ जाएंगी। शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन ना करने का फैसला किया है और अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। बीजेपी 2019 का चुनाव अकेले लड़ना नहीं चाहती। 2014 में गठबंधन ने महाराष्ट्र की 48 में से 42 सीटें जीतीं थीं। 2019 में गठबंधन ना हुआ तो सीटों का बड़ा नुकसान होना तय है। लिहाजा, बीजेपी अब गठबंधन कायम रखने की हर मुमकिन कोशिश में लग गई है लेकिन अमित शाह की उद्धव से मीटिंग तय होने के बाद भी शिवसेना के तेवर में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा। शिवसेना कह रही है कि बीजेपी ने देर कर दी।
बीजेपी से शिवसेना की नाराज़गी पिछले कई साल से थी लेकिन हाल ही में पालघर और भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव में दोनों दलों के बीच ऐसी बयानबाजी हुई कि रिश्ते और भी कमजोर हो गए। बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन नहीं हुआ तो इसका फायदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को मिलना तय है इसलिए ये दल भी शिवसेना की नाराज़गी को हवा दे रहे हैं। एनसीपी नेता नवाब मलिक का कहना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन में सबसे बड़ा रोड़ा इस बात का है कि राज्य में बड़ा भाई कौन है। जिस तरह बिहार में जेडीयू ने खुद को बड़ा भाई घोषित कर दिया है उसी तरह शिवसेना भी महाराष्ट्र में खुद को बड़ा भाई मानती है।
बड़े भाई का मतलब है गठबंधन के तहत ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना लेकिन बीजेपी के लिए शिवसेना को बड़ा भाई मानना आसान नहीं होगा। 2014 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में बीजेपी को 24 सीटें मिली थी वहीं शिवसेना महज 18 सीटें जीत पाई थी। 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 122 सीटें मिली थीं तो शिवसेना को सिर्फ 63 सीटें मिली थीं। लोकसभा-विधानसभा में ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी छोटा भाई बनना नहीं चाहेगी।
हाल के उपचुनावों में बीजेपी की हार हुई है। सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही एक के बाद एक तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। तेलगू देशम पार्टी एनडीए से अलग हो गई है, जेडीयू भी बीच-बीच में आंख दिखा रही है इसलिए बीजेपी अब अपने गठबंधन के हर साथी को एनडीए में शामिल रखना चाहती है। शिवसेना के मामले में क्या होता है इसका अंदाजा अमित शाह से मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे के बयान से ही लग पाएगा।