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आखिर भीमराव सकपाल क्यों और कैसे बन गए अंबेडकर, जानें कुछ रोचक तथ्य

अपनी सारी जिंदगी भारतीय समाज में बनाई गई जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष में बिताने वाले अंबेडकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : April 14, 2018 10:33 IST
Bhimrao Ambedkar
Bhimrao Ambedkar

नई दिल्ली: भारतीय संविधान के जन्मदाता डॉ॰ भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्म आज ही के दिन 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्य प्रदेश) में हुआ था। वह एक विश्व स्तर के विधिवेत्ता थे। वे एक दलित राजनीतिक नेता और एक समाज पुनरुत्थानवादी होने के साथ-साथ, भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार भी थे। वे महान बोधिसत्व तथा बाबा साहेब के नाम से लोकप्रिय हैं। अपनी सारी जिंदगी भारतीय समाज में बनाई गई जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष में बिताने वाले अंबेडकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया है।

उनके जन्मदिन के मौके पर हम बता रहे हैं उनसे जुड़ीं रोचक बात.....

डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। सवाल उठता है कि जब उनके पिता का सरनेम सकपाल था तो उनका सरनेम आंबेडकर कैसे?

भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ा। प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा रहा था। उनको क्लास रूम के अन्दर बैठने की इजाजत नहीं थी। साथ ही प्यास लगने प‍र कोई ऊंची जाति का शख्स ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के बर्तन को छूने की इजाजत थी।

उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल' के बजाय ‘आंबडवेकर' लिखवाया। वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे और उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन रहा है। इस तरह भीमराव आंबेडकर का नाम अंबाडवे गांव से आंबाडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया गया। एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को बाबासाहब से विशेष स्नेह था। इस स्नेह के चलते ही उन्होंने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया।

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