साल 1995, अखिलेश यादव 22 साल के रहे होंगे, उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार के बीच दो अलग-अलग सियासी सोच टकरा रहीं थी। सियासी समझ के इस संग्राम में सत्ता दाव पर लगी थी, मिलायम सिंह यादव कुर्सी बचाने का जुगाड़ ढूंढ रहे थे क्योंकि मायावती सपा-बसपा गठबंधन से हाथ खींचने का मन बना चुकी थीं। और, मुलायम सिंह इस बात को बखूबी जानते थे कि बसपा के साथ के बिना सत्ता पर काबिज नहीं रहा जा सकता। लिहाजा, साम, दाम, दंड, भेद सब दांव चलाए गए। और, उन्हीं दावों की बानगी है, लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड।
शुरुआत कहां से हुई?
सितंबर 1992 में मुलायम ने सजपा से नाता तोड़कर 4 अक्टूबर को लखनऊ में समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। पार्टी को और मजबूत स्थिति में लाने के लिए मुलायम सिंह यादव ने 1993 के विधानसभा चुनावों के बाद बसपा के साथ मिलकर सरकार बनाई, मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव। सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और 109 सीटें जीती, वहीं बसपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा और 67 सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन, ये दोनों के बीच की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली। मायावती और मुलायम सिंह यादव के बीच तकरार का माहौल रहता था।
हालांकि, कांशीराम बसपा के अध्यक्ष हुआ करते थे और मायावती उपाध्यक्ष थीं। लेकिन, एक तरह से उस वक्त भी मायावती ही पूरा शासन परोक्ष रूप से चलाती थी। कहा जाता है कि मायावती मुलायम पर भी हुक्म चलाती थी और मुलायम को ये कतई स्वीकार नहीं था। ऐसे ही कई किस्सों और कहानियों से होकर हालात यूं बने कि मुलायम और मायावती दोनों एक दूसरी की आंखों में चुभने लगे थे। मायावती प्लान कर रही थीं गठबंधन से बाहर निकलने का लेकिन तभी मुलायम सिंह यादव को इसकी भनक लग गई। कहा जाता है कि मायावती को 'डराने' के लिए दो जून, 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस कांड करवाया गया, तब कैलेंडर तारीख चस्पा थी 2 जून 1995।
अजय बोस की किताब 'बहनजी' क्या कहती है?
मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब 'बहनजी' (हिंदी अनुवाद) के पेज संख्य 104 और 105 पर छपा है कि “ चीख-पुकार मचाते हुए वे (समाजवादी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता और भीड़) अश्लील भाषा और गाली-गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे। कॉमन हॉल में बैठे विधायकों (बहुजन समाज पार्टी के विधायक) ने जल्दी से मुख्य द्वार बंद कर दिया, परन्तु उन्मत्त झुंड ने उसे तोड़कर खोल दिया।”
किताब में आगे लिखा है कि “फिर वे असहाय बसपा विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें थप्पड़ मारने और लतियाने लगे। कम-से-कम पांच बसपा विधायकों को घसीटते हुए जबर्दस्ती अतिथि गृह के बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया, जो उन्हें मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर ले गईं। उन्हें राजबहादुर के नेतृत्व में बसपा विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और एक कागज पर मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने की शपथ लेते हुए दस्तखत करने को कहा गया। उनमें से कुछ तो इतने डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर ही दस्तखत कर दिए।”
“उन्होंने” जब हमला किया, तब गेस्ट हाउस में क्या हो रहा था?
तारीख ऊपर भी बताई है लेकिन फिर भी एक बार और जान लीजिए। वो तारीख थी 2 जून 1995। मायावती अपने विधायकों के साथ लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में बैठक कर रही थीं। अचानक ही वहां समाजवादी पार्टी के समर्थक आ धमके और आगे उन्होंने जो तांडव मचाया उसका जिक्र आपने ऊपर पढ़ा ही है। हालांकि, किताब में 5 विधायकों को उठाकर ले जाने की बात हुई है लेकिन कहा जाता है कि ये संख्या 12 थी। मायावती ने आक्रमक हो चुके SP समर्थकों से बचने के लिए कमरे में खुद को बंद कर लिया था, इस वक्त उनके साथ BSP के विधायक भी थे।
दो पुलिस वालों ने मायावती को बचाया
अजय बोस की किताब 'बहनजी' में लिखा गया है कि “मायावती को दो कनिष्ठ पुलिस अफसरों हिम्मत ने बचाया। ये थे विजय भूषण, जो हजरतगंज स्टेशन के हाउस अफसर (एसएचओ) थे और सुभाष सिंह बघेल जो एसएचओ (वीआईपी) थे, जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ ले कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला।” कहा तो ये भी जाता है कि बीजेपी के ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन ने भी मायावती को बचाने में भूमिका निभाई थी। जिसके बाद से BJP और BSP के संबंधों का विस्तार हुआ और BJP के समर्थन से मायावती ने सरकार बनाई। गेस्ट हाउस कांड के अगले ही दिन (3 जून 1995) को मायावती ने यूपी के सीएम पद की शपथ ली।
इस हादसे के बाद से बसपा और सपा को साथ आने में पूरी एक पीढ़ी का वक्त लग गया। अब जब सपा अखिलेश यादव के हाथों में है तब कहीं जाकर दोबारा से बसपा और सपा एक हो पाएं हैं।