मुंबई: भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी के एक ब्लॉग पोस्ट में राजनीतिक रूप से अलग राय रखने वालों को उनकी पार्टी द्वारा कभी “राष्ट्र विरोधी” नहीं कहे जाने की बात लिखे जाने के कुछ दिनों बाद शनिवार को शिवसेना ने यह जानना चाहा कि इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी।
आडवाणी के बयान कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव हैं और इन्हें निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संचालित कराए जाने को उद्धृत करते हुए शिवसेना ने जानना चाहा कि उनकी टिप्पणी किस पर लक्षित है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र “सामना” के एक संपादकीय में लिखा, “लाल कृष्ण आडवाणी ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ी। इस बार उन्होंने लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं...उन्होंने एक ब्लॉग लिखा, लेकिन ऐसा करने में उन्हें पांच लंबे वर्षों का वक्त लगा।” इसमें पूछा गया, “आडवाणी ने कहा कि अपने विरोधियों को राष्ट्र द्रोही समझने की भाजपा की परंपरा नहीं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने राजनीतिक रूप से असहमति रखने वालों को कभी राष्ट्रद्रोही या दुश्मन नहीं समझा, बल्कि सिर्फ विरोधी माना।”
संपादकीय के मुताबिक, “क्योंकि यह बयान आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेता द्वारा दिया गया है, यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने ‘मन की बात’ भाजपा के स्थापना दिवस के मौके पर प्रभावी तरीके से व्यक्त की। भाजपा के संस्थापकों में से एक द्वारा की गई इस टिप्पणी के पीछे मंशा क्या है? शिवसेना ने कहा कि चुनावी रैलियों में ‘विपक्ष पाकिस्तान या दुश्मनों की भाषा बोल रहा है’ जैसे बयान दिए जा रहे हैं। शिवसेना ने कहा, “प्रचार के दौरान विकास, प्रगति, महंगाई के मुद्दे पीछे छूट गए हैं जबकि पाकिस्तान, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को महत्व मिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलवामा हवाई हमले में 40 जवानों की शहादत और उसके बाद के हवाई संघर्ष ने बाकी सभी मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन यह अस्थायी था।”
इसमें कहा गया, “ऐसा लगता है कि आडवाणी का लेख यह संकेत दे रहा है कि जिस तरह विपक्ष का हवाई कार्रवाई का साक्ष्य मांगना गलत है, उसी तरह विपक्ष को राष्ट्रविरोधी मानना भी गलत है। जो लोग मोदी के साथ नहीं हैं वह राष्ट्र के साथ नहीं हैं यह भाजपा के प्रचार का केंद्रीय बिंदु है और विपक्ष इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है।”
शिवसेना ने कहा, “विपक्ष यह कह रहा है कि मोदी देश नहीं हैं। यद्यपि वो जो कह रहे हैं हो सकता है वह गलत न हो, 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मामले में भी कुछ अलग नहीं हो रहा था। उस समय ‘इंदिरा इज इंडिया’ जैसे नारे लगाए जा रहे थे और उनकी अगली पीढ़ी अब कह रही है कि ‘मोदी इज नॉट इंडिया’। ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा लोगों को पसंद नहीं आया। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है और आडवाणी ने भी इसी चीज को व्यक्त किया।”