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BLOG: कांग्रेस से अपमान का बदला सत्ता से बेदखल करके!

सत्ता की हनक और कुर्सी की चाहत ऐसी होती है कि क़ानून और मर्यादा को ताक़ पर रखकर जनहित और जन भावनाओं से खिलवाड़ करने में सियासी दल गुरेज नहीं करते हैं।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: August 14, 2018 23:46 IST
Aditya Shubham blog- India TV Hindi
Aditya Shubham blog

इतिहास से वर्तमान तक भारतीय राजनीति में कई ऐसी घटनाएं हैं, जिसको जानने के बाद लगता है कि ये नहीं होना चाहिए था। लेकिन सत्ता की हनक और कुर्सी की चाहत ऐसी होती है कि क़ानून और मर्यादा को ताक़ पर रखकर जनहित और जन भावनाओं से खिलवाड़ करने में सियासी दल गुरेज नहीं करते हैं। 80 के दशक की ऐसी ही एक घटना है आन्ध्र प्रदेश की। जब देश में कहीं अलग राज्य, कहीं देश से अलग देश, तो राज्यों के भीतर हीं कुछ इलाकों की स्वायत्तता की मांग चल रही थी। उसी दौर में कांग्रेस के पुराने गढ़ आन्ध्रप्रदेश के लोग कांग्रेस के रवैये से नाराज़ चल रहे थें। आन्ध्र के लोग इस बात से नाराज़ थे कि केन्द्र की तरफ़ से बार-बार क्यों मुख्यमंत्री थोपा जा रहा है। राजनीति में ‘यस मैन’की पूछ होती है, शायद इसी वजह से इन्दिरा गांधी ने 1978 से लेकर 1982 के बीच कम से कम 4 बार मुख्यमंत्री बदल दिए।

फ़रवरी 1982 में राजीव गांधी के निजी यात्रा के दौरान, स्वागत के लिए कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री टी अंजय्या अपने समर्थकों की भीड़ के साथबेगमपेट हवाई अड्डा,हैदराबाद पर स्वागत करने गए थें। हवाई अड्डे पर हीं राजीव गांधी ने टी अंजय्या को उनके हीं समर्थकों के बीच इतनी फ़टकार लगाई कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। मुख्यमंत्री को यह अपमान तो निजी तौर पर महसूस हुआ ही, साथ हीं तेलुगू मीडिया ने इसे तेलुगू गौरव के अपमान की तरह पेश किया। तेलुगू गौरव के अपमान से उत्तेजित लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने का फ़ैसला ले लिया। तेलुगू फ़िल्मों के महानायक एन.टी. रामाराव ने अपने 60 वें जन्मदिन पर एक क्षेत्रीय पार्टी 'तेलुगू देशम पार्टी' का गठन किया। यह पार्टी क़रीब 6 करोड़ तेलुगू भाषी लोगों के आत्मसम्मान और गौरव की रक्षा के लिए बनाई गई थी। एनटीआर ने कहा कि अब आगे से आन्ध्र प्रदेश जैसा गौरवशाली राज्य कांग्रेस पार्टी के शाखा कार्यालय की तरह काम नहीं करेगा।

साल 1982 के अन्त में राज्य विधानसभा का चुनाव होना था। एनटीआर ने राज्यभर में घूम-घूमकर कांग्रेस के भ्रष्ट शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द की। रथ के आकार की एक गाड़ी से राज्यभर का दौरा किया। चुनाव में रथ इस्तेमाल करने वाले पहले नेता थे एनटीआर। रथ का नाम चैतन्य रथम था। एनटीआर वहां के लोगों से विश्वविद्यालय और राज्य की नौकरियों में वरियता देने का वादा किया। इनको सुनने के लिए जनसभाओं में महिलाओं की भी भारी भीड़ उमड़ती थी। जनसभाओ में वे अचानक हीं गाड़ी के ऊपर प्रकट होते थे, जिसका मंच एक जेनरेटर के सहारे ऊपर उठा होता था। जिस भगवा का डर दिखाकर वर्तमान में कांग्रेस राजनीति करती है, वही भगवा वस्त्र धारण करके एनटीआर ने चुनाव प्रचार किया। भगवा संन्यास का प्रतीक होता है। एनटीआर के भगवा धारण करने का मतलब था कि उन्होंने जनता की सेवा के लिए अपने फ़िल्मी करियर को छोड़ दिया है।

राज्य विधानसभा चुनाव में तेलुगू देशम पार्टी ने दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। जनवरी 1983 के दूसरे सप्ताह में रामाराव के हैदराबाद के फ़तेह मैदान में आन्ध्र प्रदेश के 10 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। शपथ ग्रहण समारोह  में क़रीब दो लाख़ लोगों की भीड़ जुटी। एक समाजवादी ने कहा था- अगर प्रधानमंत्री सोचती हैं कि वह खुद हीं हिन्दुस्तान हैं,तो एनटीआर भी क़रीब 6 करोड़ लोगों के एकमात्र प्रतिनिधि हैं।

ब्लॉग लेखक आदित्य शुभम अग्रणी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं

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