आगामी लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बाकी हैं। लिहाज़ा सभी दलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। मार्च 2019 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क़रीब 50 रैलियां करेंगे, ऐसी सूचना है। एनडीए और यूपीए, दोनों की तरफ़ से जमकर एक-दूसरे की पर मौखिक हमले हो रहे हैं। इन हमलों में मुख्य भूमिका में भाजपा और कांग्रेस है। कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया, वहीं भाजपा का कहना है कि हमने देश की सत्ता बिल्कुल बदहाल स्थिति में सम्भाली थी, जिसके बावज़ूद कई बेहतरीन काम किये हैं। चुनावी साल में काम ना करने और काम करने के शोर के अलावा कई और शोर हैं, जो इस बात की तरफ़ इशारा कर रहे हैं कि यदि यही स्थिति रही तो आकांक्षाओं में डूबे विपक्षी दल, मोदी सरकार को चुनौती देने में नाकामयाब साबित होंगे।
कांग्रेस इस वक़्त अपने चुनावी इतिहास में सबसे कमज़ोर स्थिति में है। केन्द्र और राज्य दोनों जगह ऐसी स्थिति में नहीं है जिसकी बदौलत अपने दम पर मोदी सरकार को चुनौती दे सके। राजग सरकार को चुनौती देने के लिए केन्द्र में कांग्रेस ख़ुद को बड़ा भाई मानते हुए, क्षेत्रिय दलों से एकजुट होने की बात कर रही है। लेकिन ख़ुद की सियासी ज़मीन वाले मुख्य क्षेत्रीय दलों के बयानों से पता चल रहा है कि आम चुनाव के नतीज़े से पहले एकजुट होना नहीं चाहते हैं। क्या इसकी वजह कांग्रेस की स्थिति या सबके पीएम बनने की लालसा को माना जा सकता है? सियासत ‘सूत्रों के हवाले’ से तब तक होती है,जबतक उस बात की अधिकारिक पुष्टि या खंडन नहीं होता है। ऐसा ही कुछ हुआ था, जब राहुल गांधी ने महिला पत्रकारों से मुलाक़ात की थी। ख़बर आई कि राहुल ने उनके अलावा किसी महिला को प्रधानमंत्री बनाने पर हामी भर दी है। लेकिन कांग्रेस की तरफ़ से अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है। कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक के बाद मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि “ कांग्रेस का निर्णय सटीक, सपाट और स्पष्ट है। राहुल गांधी हमारा चेहरा हैं। 2019 के चुनाव में हम उनके ही नेतृत्व में जनता के बीच जाएंगे।” अब सवाल है कि जब कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम का चेहरा बनाकर जनता के बीच जाने की बात कर रही है, तो वो कौन-कौन सी विपक्षी पार्टियां होगी, जो राहुल के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगी? शायद ये आने वाले वक़्त में पता चल पाएगा। फ़िलहाल तीन मुख्य विपक्षी पार्टियों के बयान से साफ़ है कि वो चुनाव से पहले गठबंधन के लिए तैयार नहीं है।
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव बाद गठबंधन का नेता तय होगा। सपा के नेता कह रहे हैं कि गठबंधन बनने से पहले कांग्रेस कैसे पीएम उम्मीदवार की दावेदारी कर सकती है? तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने पार्टी के शहीदी दिवस पर कह दिया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव बंगाल में अकेले लड़ेगी।
बसपा प्रमुख मायावती ने तो कह दिया है कि उनकी पार्टी तब ही गठबंधन में चुनाव लड़ेगी, जब सम्मानजनक सीटें मिलेंगी। ऐसे में मायावती के लिए सम्मानजनक सीट का मतलब कितना है, ये अभी साफ़ नही है।
एनसीपी ने अभी तक साफ़ नहीं किया है कि आम चुनाव से पहले गठबंधन पर उसकी क्या राय है। लेकिन वो इस बात से सहमत है कि जो सबसे बड़ी पार्टी होगी, उसका नेता पीएम बनेगा। एक निजी चैनल से बातचीत में तारिक अनवर ने 2004 का हवाला देते हुए कहा है कि लोकतंत्र का तकाज़ा है कि जो सबसे बड़ी पार्टी होगी, नेतृत्व उसी को देना होगा।
जेडीएस और राजद की मिलीजुली राय है। दोनों को कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन तेजस्वी ने एक शर्त रखी है। तेजस्वी का कहना कि जो संविधान बचाएगा, उसका समर्थन करेंगे। तेजस्वी की ये शर्त बताती है कि लोकतंत्र को लेकर उनकी समझ स्पष्ट नहीं है। तेजस्वी को जिस कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ने में कोई परेशानी नहीं है, उसी कांग्रेस ने सत्ता के लिए संविधान को रद्दी किताब का टुकड़ा बना दिया था। ख़ैर संविधान को ख़तरे में बताना सियासी हथकंडा हो गया है।
ब्लॉग लेखक आदित्य शुभम इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। इस लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं।