नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी विधायकों के ऑफिस ऑफ प्रोफिट मामले में चुनाव आयोग की बैठक खत्म हो गई है। चुनाव आयोग अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेज सकता है। इसके बाद अब राष्ट्रपति को विधायकों पर फैसला लेना होगा। आम आदमी पार्टी के करीब बीस विधायकों पर ऑफिस ऑफ प्रोफिट का आरोप है। मुख्य चुनाव आयुक्त दीपक जोती का कार्यकाल 22 जनवरी को समाप्त हो रहा है उसके पहले चुनाव आयोग इस मामले में फैसला लेना चाहता था। चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश कर दी है। चुनाव आयोग ने आप के 20 विधायकों को अयोग्य बताया है। आप ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों के सहयोग के लिए 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था। इसके बाद सरकार ने दिल्ली विधानसभा सदस्यता अधिनियम-1997 में संशोधन का प्रयास किया।
इससे जुड़े विधेयक को उप राज्यपाल नजीब जंग ने केंद्र को भेजा। इसके तहत आप अयोग्यता के प्रावधानों से विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्ति किए जाने की तिथि से छूट चाहती है। राष्ट्रपति की ओर से विधेयक को संतुति प्रदान करने से इंकार किए जाने के बाद चुनाव आयोग ने इस फैसले का संग्यान लिया।
इन 20 विधायकों पर लटकी है तलवार
1. आदर्श शास्त्री, द्वारका, 2. जरनैल सिंह, तिलक नगर, 3. नरेश यादव, मेहरौली, 4. अल्का लांबा, चांदनी चौक, 5. प्रवीण कुमार, जंगपुरा, 6. राजेश ऋषि, जनकपुरी, 7. राजेश गुप्ता, वज़ीरपुर, 8. मदन लाल, कस्तूरबा नगर, 9. विजेंद्र गर्ग, राजिंदर नगर, 10. अवतार सिंह, कालकाजी, 11. शरद चौहान, नरेला, 12. सरिता सिंह, रोहताश नगर, 13. संजीव झा, बुराड़ी, 14. सोम दत्त, सदर बाज़ार, 15. शिव चरण गोयल, मोती नगर, 16. अनिल कुमार बाजपई, गांधी नगर, 17. मनोज कुमार, कोंडली, 18. नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर, 19. सुखबीर दलाल, मुंडका, 20. कैलाश गहलोत, नजफ़गढ़
अगर आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई तो क्या होगा?
दरअसल दिल्ली में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 36 होना चाहिए लेकिन वर्तमान में आम आदमी पार्टी के 66 विधायक हैं। ऐसे में अगर 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई तो भी दिल्ली सरकार के पास बहुमत के आंकड़े से 10 सीट ज्यादा होंगी। हालांकि इन 20 सीटों पर चुनाव आयोग दोबारा चुनाव कराएगा।
क्या है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट ?
- आर्टिकल 102 (1) (A) में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का जिक्र
- सांसद या विधायक 2 अलग-अलग लाभ के पद पर नहीं हो सकता
- अलग से सैलरी और अलाउंस मिलने वाले पद पर नहीं रह सकता
- आर्टिकल 191(1)(A) के तहत सांसद-विधायक दूसरा पद नहीं ले सकते
- पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत लाभ का पद नहीं ले सकते
- लाभ के पद पर बैठा शख्स उसी वक्त विधायिका का हिस्सा नहीं हो सकता