नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2004 से अमेरिका के निवासी और अपने बच्चे को भारत वापस लाने में नाकाम रहने के लिए दीवानी अवमानना के दोषी ठहराए गए शख्स को फटकार लगाई है। कोर्ट ने शख्स से कहा कि उसने अदालत के ‘भरोसे को तोड़ा है’ कि लोग विदेश यात्रा की इजाजत मिलने के बाद वापस आ जाएंगे। सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस ए. एस. ओका की बेंच ने कहा कि उसे व्यक्ति के आचरण के कारण उस पर भरोसा नहीं है।
महिला को बेटे की कस्टडी नहीं दी
सुप्रीम कोर्ट ने 16 जनवरी के अपने आदेश में शख्स को सिविल कंटेम्प्ट का दोषी ठहराते हुए कहा था कि उस महिला द्वारा दायर अवमानना याचिका एक वैवाहिक विवाद का नतीजा थी। महिला की 2007 में शादी हुई थी और उसे उसके 12 साल के बेटे की कस्टडी नहीं दी जबकि वह 11 मई, 2022 के आदेश के अनुसार इसकी हकदार है। बुधवार को सजा के पहलू पर दलीलें सुनते हुए बेंच ने शख्स की ओर से पेश वकील से कहा, ‘ऐसी कई घटनाएं हुई जिससे साबित होता है कि आपके मुवक्किल ने भरोसे को तोड़ा।’
‘आपने हमारे विश्वास को नुकसान पहुंचाया’
बेंच ने कहा कि वह व्यक्ति भारत में अदालती कार्यवाही से दूर रहा और उसने लगातार झूठ बोला। कोर्ट ने कहा, ‘विदेश जाने की इजाजत पर आपने हमारे उस विश्वास को बहुत नुकसान पहुंचाया। अब किसी को विदेश जाने की अनुमति देने में हम बहुत सतर्क रहेंगे।’ महिला की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि व्यक्ति ने चालबाजी की और जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया जिसने उसे बच्चे को अमेरिका ले जाने की इजाजत दी थी। शख्स की तरफ से पेश वकील ने बेंच से आरोपी के प्रति उदारता दिखाने का आग्रह किया।
बच्चे को लेकर समझौते में थीं ये शर्तें
बेंच ने कहा, ‘सजा के मुद्दे पर बहस पूरी हो गई। फैसला सुरक्षित रखा जाता है।’ कोर्ट ने जनवरी में पारित अपने आदेश में कहा था कि पुराने समझौते की शर्तों के मुताबिक बच्चा, जो उस समय छठी क्लास में था, अजमेर में ही रहेगा और 10वीं कक्षा तक की शिक्षा पूरी करेगा और इसके बाद उसे अमेरिका भेज दिया जाएगा जहां उसका पिता रह रहा है। इस बात पर भी सहमति बनी थी कि जब तक बच्चा 10वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेता, तब तक वह हर साल एक जून से 30 जून तक अपने पिता के साथ कनाडा और अमेरिका घूमने जाएगा।
अपने बेटे को कनाडा ले गया शख्स, लेकिन...
बेंच ने जनवरी के अपने आदेश में कहा कि वह शख्स पिछले साल 7 जून को अजमेर आया था और अपने बेटे को कनाडा ले गया, लेकिन वह उसे भारत वापस लेकर नहीं आया। कनाडा में उस व्यक्ति की मां और बहन रह रही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के मामले के मुताबिक, उसके बच्चे के जन्म के बाद व्यक्ति के कहने पर उसे और उसके बेटे दोनों को कनाडा भेजा गया था। महिला ने कहा कि जुलाई 2013 में उसे और उसके बेटे को घर से बाहर निकाल दिया गया, जिससे वह अगस्त 2013 में भारत आने के लिए मजबूर हो गई।
कनाडा की कोर्ट ने शख्स के पक्ष में दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यक्ति ने अपने बेटे का संरक्षण देने के लिए कनाडा की कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कोर्ट ने उसके पक्ष में आदेश दिया था। बेंच ने यह भी कहा कि कनाडा की कोर्ट ने आदेश को लागू करने के लिए विभिन्न एजेंसियों और इंटरपोल को निर्देश जारी किए थे और महिला के खिलाफ भी एक वारंट जारी करने का आदेश दिया था। इसके बाद महिला ने याचिका दायर कर राजस्थान हाई कोर्ट में बच्चे की पेशी की मांग की। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। (भाषा)