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Year Ender 2022: चीन ने भड़काई Tawang में चिंगारी, जानें क्यों भारत से युद्ध पर आमादा हैं शी जिनपिंग

India-China Border Clash Tawang: अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे तवांग क्षेत्र में वर्ष 2022 बीतते-बीतते चीन ने युद्ध की चिंगारी भड़का दी है। वैसे तो भारत और चीन के बीच सीमा का विवाद 72 वर्ष पुराना है। मगर ताजे युद्ध का धुआं जून 2020 से उठ रहा है।

Reported By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Dec 16, 2022 17:59 IST, Updated : Dec 16, 2022 18:13 IST
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैनिक (फाइल)
Image Source : PTI वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैनिक (फाइल)

India-China Border Clash Tawang: अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे तवांग क्षेत्र में वर्ष 2022 बीतते-बीतते चीन ने युद्ध की चिंगारी भड़का दी है। वैसे तो भारत और चीन के बीच सीमा का विवाद 72 वर्ष पुराना है। मगर ताजे युद्ध का धुआं जून 2020 से उठ रहा है, जब चीन ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों से हिंसक संघर्ष किया था। इस दौरान भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। मगर डोक्लाम में कब्जा जमाने की चीन की चाहत को नाकाम कर दिया था। इस खूनी संघर्ष में चीन के भी करीब 50 जवान मारे गए थे। इसके बाद से ही भारत-चीन की सीमा (वास्तविक नियंत्रण) रेखा पर हालात लगातार नाजुक बने हैं। अब तवांग के तनाव ने दोनों देशों को फिर से घातक मोड़ पर ला खड़ा किया है। आखिर क्या वजह है कि चीन और शी जिनपिंग भारत से जानबूझकर युद्ध पर आमादा हैं?...आइए आपको बताते हैं कि भारत और चीन के बीच विवाद की असली वजह क्या है?

1950 में हुआ भारत-चीन के बीच पहला विवाद

वर्ष 1950 में भारत और चीन के बीच पहली बार तिब्बत को लेकर विवाद शुरू हुआ था। चीन तिब्बत को अपना क्षेत्र बताने लगा था। चीन ने अपनी कुछ ऐतिहासिक धरोहरों के तिब्बत में होने का बहाना बनाकर इसे अपने कब्जे में ले लिया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया। उन्होंने विरोध पत्र लिखकर चीन को इस मुद्दे पर बातचीत करने को भारत ने कहा, लेकिन चीन ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इससे दोनों देशों के बीच विवाद रहने लगा। बाद में वर्ष 1954 में पंचशील समझौते के तहत पंडित नेहरू ने तिब्बत को चीन को सौंप दिया और नेहरू ने तब हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया।

चालबाज चीन को आई आक्साई चिन और अरुणाचल पर लालच
भारत ने सोचा था कि चीन को तिब्बत दे देने के बाद यह विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा, लेकिन उसके इरादे नेक नहीं थे। वर्ष 1954 चीन को भारत के आक्साई चिन पर भी लालच आ गई। इसी वर्ष उसने तिब्बत को शिनजियांग प्रांत से जोड़ने के लिए आक्साई चिन के रास्ते से एक सड़क बना दी। चीन की लालच लगातार बढ़ती ही जा रही थी। वर्ष 1958 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश को भी अपने नक्शे में दिखा दिया। अब चीन आक्साई चिन और अरुणाचल पर दावा करने लगा।  इसी दौरान तिब्बत ने चीन का विरोध करना शुरू कर दिया। आक्साई चिन में सड़क बाने की बात भारत को पांच साल बाद 1959 में पता चली। इसी वर्ष दलाईलामा भारत दौरे पर आए। तब चीन को लगा कि तिब्बतियों का विरोध भारत की वजह से है। चीन ने बल प्रयोग कर तिब्बत को चुप करा दिया। इसके बाद चीन ने आक्साई चिन और अरुणाचल के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर अपना दावा किया। 1960 में चीन के प्रीमियर झोउ एनालाइस ने आक्साई चिन से भारत को दावा छोड़ने को कहा। मगर पंडित जवाहरलाल नेहरू इस पर राजी नहीं हुए। लिहाजा दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता रहा।

फॉरवर्ड पॉलिसी विवाद
चीन लगातार एक के बाद एक भारतीय क्षेत्र पर अपना दावा करता जा रहा था। इसी बीच 1960 में भारत के इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी) की सिफारिश पर देश ने फॉरवर्ड पॉलिसी बनाई। इसके साथ ही भारतीय सेना को मैकमोहन रेखा और आक्साईचिन के सीमावर्ती क्षेत्र तक कब्जा करने को कहा गया। चीन ने इसका विरोध किया। इसके बाद एक वर्ष तक भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प होती रही। चीन अक्सर भारतीय सैनिकों और चौकियों को निशाना बनाता रहा।

1962 में भारत पर चीन ने कर दिया हमला
आक्साई चिन को लेकर 20 अक्टूबर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर हमला बोल दिया। उस दौरान चीन के पास 80 हजार सैनिक थे और भारत के पास केवल 22 हजार। लिहाजा चीन की सेना चार ही दिनों में अरुणाचल, आक्साई चिन और असम तक पहुंच गई। मगर इस दौरान तीन हफ्ते तक उन्होंने कोई लड़ाई नहीं की। चीनी सैनिक सिर्फ भारतीय क्षेत्र में घुसते चले आए। फिर चीन ने भारतीय सैनिकों को 20 किलोमीटर और पीछे हटने को कहा। मगर भारत ने कहा कि चीन के सैनिक भारतीय सीमा में 60 किलोमीटर तक पहले ही घुस आए हैं। अब हम 20 किलोमीटर और पीछे नहीं हट सकते। इसके बाद 14 नवंबर से चीन ने फिर युद्ध छेड़ दिया। हालांकि यह युद्ध सिर्फ 7 दिनों तक चला। 21 नवंबर 1962 को चीन ने स्वयं युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस युद्ध में भारत के करीब 1400 सैनिक मारे गए। 1700 लापता हो गए और 4000 सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया। वहीं चीन के स्रोत के अनुसार उसके 800 के करीब सैनिक मारे गए 1500 के करीब घायल हुए। इस दौरान आक्साई चिन के 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन ने अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि वह अरुणाचल और असम के क्षेत्र से स्वयं पीछे हट गए। इस युद्ध में सिर्फ थल सेना का इस्तेमाल हुआ और भारत की हार हुई।

1967 में भारत ने लिया बदला
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नथुला क्षेत्र में बिल्कुल आमने- सामने भारत-चीन के सैनिकों की तैनाती है। इनमें से आधा हिस्सा भारत और आधा हिस्सा चीन के पास है। 1967 में भारत ने तय किया कि वह अपने हिस्से में बाड़ या तार लगाएंगे। मगर चीन ने रोकने का प्रयास किया। भारतीय सैनिक निहत्थे एलएसी पर तार लगा रहे थे। इस बीच चीन ने वार्निंग दी कि हट जाओ वर्ना गोली चला देंगे। दरअसल यहां दोनों देशों के सैनिक निहत्थे होते हैं। मगर चालाक चीन ने पहाड़ियों पर चुपके से अपने हथियार जुटा लिए थे। उन्होंने भारतीय सैनिकों पर फायरिंग कर दी। इस दौरान 67 सैनिक जो तार लगा रहे थे, सभी शहीद हो गए। इसके बाद भारत ने पलटवार किया और उनके भी करीब 200 सैनिक मार दिया। इसके बाद तीन-चार दिनों तक युद्ध चला। भारत ने चीन की फायरिंग के जवाब में तोप चला दी। इस प्रकार चीन के करीब 340 सैनिक मारे गए। भारत के कुल 88 शहीद हुए। इसके बाद चीन ने फाइटर जेट लाने की धमकी दी। मगर बाद में उन्होंने शांति बहाल की घोषणा कर दी। इस प्रकार युद्ध में भारत की जीत हुई।

जून 2020 में चीन ने फिर की घुसपैठ की कोशिश
वर्ष 1962 और 67 के बाद चीन ने तीसरी बार जून 2020 में भारत में घुसपैठ की कोशिश की। डीजीएमओ में चीन ऑपरेशन के ब्रिगेडियर रहे मेजर जनरल एस मेस्टन कहते हैं कि पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी स्थित फिंगर 4 से 8 तक भारत का क्षेत्र है। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है। भारत फिंगर 8 तक क्लेम करता है। मगर चीन फिंगर 4 तक अपना दावा करता है। इसलिए यह एरिया ऑफ डिस्प्यूट में आता है। आमतौर पर भारतीय सैनिक फिंगर 4 तक ही रहते हैं, लेकिन पेट्रोलिंग के लिए फिंगर 8 तक कभी-कभी गुप्त रूप से जाते हैं। वहां चीनी फौज नहीं होती। कभी-कभी चीनी सैनिक भी फिंगर 8 तक पेट्रोलिंग करने आते हैं। भारतीय सैनिक जब वहां जाते हैं तो वहां कोई न कोई निशान छोड़कर आते हैं या कोई बोर्ड लगाकर आ जाते हैं कि यह हमारा क्षेत्र है। इसी तरह चीनी सैनिक आते हैं तो फिंगर 8 के पास कोई निशान छोड़ जाते हैं या बैनर लगाते हैं कि यह हमारा क्षेत्र है। कई बार एक साथ पेट्रोलिंग के लिए भारत-चीन के सैनिक एक ही समय में फिंगर 8 तक आ जाते हैं। इसे फेस ऑफ कहते हैं। इसी दौरान दोनों पक्षों में किसी से कहासुनी हो गई तो झड़प हो जाती है। मगर फेसऑफ में फायरिंग नहीं होती। जब यह ज्यादा हो जाए तो केजुअलिटी हो जाती है। वर्ष 2020 में भी यही हुआ।

विवाद की अन्य वजहें
गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच खूनी संघर्ष की एक वजह यह भी थी कि भारत उस दौरान एलएसी तक दो क्षेत्रों को जोड़ने के लिए सड़क बना रहा था। चीन इसका विरोध कर रहा था। इस वजह से चीनी सैनिक भारत से भिड़ गए। इसके अलावा चीन अरुणाचल पर भी दावा करता है। जबकि अरुणाचल प्रदेश भारत का है, लेकिन चीन इसे अपने नक्शे में दिखाता है। इसे लेकर भी भारत और चीन के बीच विवाद है। स्थिति यह है कि अरुणाचल के कई हिस्से में भारत के राष्ट्रपति को भी वीजा लेकर जाना पड़ता है। भारत के आक्साई चिन पर भी चीन का कब्जा है। चीन इस पर भारत के दावे को खारिज करता है। वह इसे शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता है। आक्साई चिन भी दोनों देशों के बीच विवाद की प्रमुख वजह है। आक्साई चिन करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का है। मगर यह पाकिस्तान के कब्जे में है। उसमें से पाकिस्तान ने शक्सगाम वैली जो चीन को दी है वह भी हमारी है। यह बहुत खूबसूरत घाटी है। इसे लेकर भी भारत और चीन के बीच विवाद है।

इसलिए युद्ध चाहते हैं शी जिनपिंग

वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। पीएम मोदी की छवि ग्लोबल लीडर की बन चुकी है। भारत अब 2027 तक दुनिया की सबसे बड़ी तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। आर्मी को मजबूत करने में और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी भारत ने बड़ी सफलता अर्जित की है। ऐसे में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाना दुनिया की मजबूरी होगी। भारत के पास भी वीटो पावर आ जाएगा। यह बात चीन को खल रही है। चीन भारत और पीएम मोदी दोनों का कद दुनिया के सामने बढ़ते नहीं देख पा रहा। वह भारत की अर्थव्यवस्था तहस-नहस करना चाहता है। इसलिए जानबूझकर शी जिनपिंग युद्ध छेड़ रहे। ताकि भारत वह मुकाम हासिल न कर पाए। इसके अलाव जिनपिंग अमेरिका से भी आगे चीन को ले जाना चाहते हैं। चीन को लगता है कि इस राह में भारत ही बड़ा रोड़ा है। क्योंकि एशिया में चीन का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी भारत ही है। इस दौरान रूस भारत की मदद करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए शी जिनपिंग को यह सबसे अच्छा वक्त भारत पर हमला करने का लग रहा। ताकि युद्ध में फंसकर भारत की अर्थव्यवस्था टूट जाए या मोदी की सरकार गिर जाए।

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