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World Press Freedom Day: ना 'स' से संतुलन और ना ही 'च' से चमक... यही है 'सच'

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ कहा जाता है। ये एक जोखिमभरा काम है। कई बार पत्रकारों पर संवेदनशील स्थलों पर हमले कर दिए जाते हैं तो कई बार किसी मुद्दे का पर्दाफाश करने पर पत्रकारों को जेल जाना पड़ जाता है कई पत्रकारों की तो हत्या तक कर दी जाती है।

Written By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published on: May 03, 2023 8:36 IST
3 मई  को मानाया जाता है विश्व प्रेस आजादी दिवस- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO 3 मई को मानाया जाता है विश्व प्रेस आजादी दिवस

World Press Freedom Day: आज 3 मई के दिन अगर विश्व प्रेस आजादी दिवस मनाया जाता है तो इसका मतलब है कि पत्रकारिता ने एक दौर में गुलामी झेली होगी और कई देशों में पत्रकारिता अभी भी शासक या सरकारों की गुलाम है। कुछ देश ऐसे भी हैं जहां, खुले तौर पर तो नहीं पर काफी हद तक मीडिया संस्थाओं पर सरकार का अधिकार है और वे सरकारें अपनी शक्ति का समय-समय पर दुरुपयोग भी करती हैं। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ कहा जाता है। ये एक जोखिमभरा काम है। कई बार पत्रकारों पर संवेदनशील स्थलों पर हमले कर दिए जाते हैं तो कई बार किसी मुद्दे का पर्दाफाश करने पर पत्रकारों को जेल जाना पड़ जाता है कई पत्रकारों की तो हत्या तक कर दी जाती है। ऐसे तमाम उदाहरण देश और दुनिया में सामने आते रहते हैं। 

जान जोखिम में डालकर सच दिखाना नहीं आसान 

चौते स्तंभ को कोई कमजोर ना कर सके और लोकतंत्र की छत को बचाया जा सके, इसके लिए बेहद जरूरी हो जाता है कि पत्रकार और पत्रकारिता की आजादी बची रहे और शासनों और सरकारों की ये जिम्मेदारी होनी चाहिए कि सोशल मीडिया और अफवाहों के इस दौर में पत्रकारिता को उसके मूल धर्म में जिंदा और स्वतंत्र रखा जाए। आखिरकार सरकारें हों या विपक्षी दल, हर किसी को राजनीतिक लड़ाइयों के लिए पत्रकार ही तो मुद्दे निकाल सामने रखते हैं। इसी उद्देश्‍य के साथ हर साल 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। 

बर्खास्तगी, गिरफ्तारियां और हत्याएं सच का परिणाम
पत्रकारिता से सच की उम्मीद उतनी ही नैसर्गिक है जितनी की आग के गर्म होने और बर्फ के ठंडे होनी की। लेकिन पत्रकारों के लिए पत्रकारिता करना ना तो इतना नैसर्गिर है और ना ही इतना आसान। पत्रकारों की गिरफ्तारियां, हत्याएं और बर्खस्तगी की खबरें आती रहती हैं, विरले ही ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब किसी पत्रकार या पत्रकारिता के लिए बड़े स्तर पर कोई लड़ने के लिए खड़ा हुआ हो। सच दिखाने की कीमत पत्रकार को उसकी पगार के बराबर ही मिलती है, बेहद कम। प्रेस को सही मुद्दे, सच का लेंस लगाकर दिखाने से कई बार केवल सरकारें ही नहीं रोकती, बल्कि कुछ अंदरूनी, कारोबारी, सामाजिक या आपराधिक ताकतें भी खबर और सच के बीच की रेखा को धुंधली करने में लगे रहती हैं। सच की रस्सी पर चलने वाले पत्रकारों का सच अगर इन ताकतों की आंखों को चौंधा लगता है तो पत्रकारों की कभी नौकरी पर बन आती है तो कभी गिरफ्तारी पर तो कभी हत्या जैसे परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। 

अपने हिस्से का सच, सच्चा और दूसरे का एजेंडा कैसे?
विडंबना ये है कि पत्रकार और प्रेस की आजादी की बात तो सब करते हैं लेकिन समाज आज ऐसे दौर में खड़ा है जहां हर किसी को अपने-अपने हिसाब से सच जानना है। समाज के एक वर्ग को अपने हिस्से का सच, सच्चा लगता है और दूसरे के हिस्से का सच एजेंडा लगता है। ऐसे में ये कैसे और कौन तय करेगा कि हर किसी का अपना एक सच होता है। ये जिम्मा उठाए प्रेस को आजाद रखने और रहने की उम्मीद रखने वाला समाज। सच की जानने से पहले हमें इसे समझने और बर्दाश्त करने की सहनशीलता लानी होगी। सच के शब्द में ना तो 'स' से संतुलन होता है ना ही 'च' से चमक, लिहाजा हमें सच को सच के ही रूप में स्वीकार करना चाहिए, ना कि प्रेस या पत्रकारों से अपेक्षा करना चाहिए कि वो सच किसी एक वर्ग विषेश को ध्यान में रखकर दिखाएं। 

क्या है विश्व प्रेस आजादी दिवस
इसकी नींव तब पड़ी जब साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए मुहिम छेड़ी थी। 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर एक बयान जारी किया गया था, इसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से जाना जाता है। इसके दो साल बाद 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस ऐलान के बाद 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इतना ही नहीं हर साल 3 मई को यूनेस्को की ओर से गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज दिया जाता है। ये पुरस्कार उस पत्रकार या संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय काम किया हो। 

(नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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