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दिनकर से लेकर बच्चन तक, इन कवियों ने अपनी रचनाओं से बढ़ाया हिंदी का मान

10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। भारत में कई कवि हुए हैं जिन्होंने हिंदी का मान बढ़ाया है। किसी ने क्रांतिकारी तो किसी प्रेम और देशभक्ति की रचनाओं द्वारा हिंदी को हमेशा आगे बढ़ाया है।

Written By: Subhash Kumar @ImSubhashojha
Updated on: January 09, 2024 13:05 IST
विश्व हिंदी दिवस।- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL MEDIA विश्व हिंदी दिवस।

करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली दिल की भाषा यानी हिंदी के सम्मान के रूप हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी भाषा न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है। हिंदी दुनिया में बोली जाने वाली पांच प्रमुख भाषाओं में से एक है। ये भारत को एक सूत्र में बांधने वाली माध्यम है। हमारे देश में ऐसे कई कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने और लोगों को इससे जोड़ने में अहम भूमिका अदा की है। किसी ने क्रांतिकारी तो किसी प्रेम और देशभक्ति की रचनाओं द्वारा हिंदी को हमेशा आगे बढ़ाया है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ खास लोगों के बारे में हमारे इस हिंदी दिवस की स्पेशल खबर में।

रामधारी सिंह दिनकर।

Image Source : DINAKAR NYAS
रामधारी सिंह दिनकर।

रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के एक प्रमुख  लेखक व कवि थे। स्वतन्त्रता से पूर्व ही दिनकर ने एक विद्रोही कवि के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। उनकी कविताएं आज भी आम लोगों के मन में जोश भरने का काम करती है। दिनकर को उनकी रचनाओं के लिए पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 'उर्वशी 'के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। महाभारत के संदर्भ में लिखी गई दिनकर की रचना 'रश्मिरथि' को आज भी युवा वर्ग द्वारा काफी पसंद किया जाता है। पढ़ें उनकी कुछ पंक्तियां-:

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुये विनत जितना ही

दुष्ट कौरवों ने तुमको, कायर समझा उतना ही।

सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।

हरिवंश राय बच्चन।
Image Source : PRATHACULTURALSCHOOL.COM
हरिवंश राय बच्चन।

हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय बच्चन देश के प्रसिद्ध हिंदी कवि व लेखक थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। जो आज भी लोगों द्वारा पढ़ी जाती है। उनकी कृति दो चट्टानें को हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वहीं, भारत सरकार द्वारा उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वह भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ भी रहे थे। पढ़ें उनकी कुछ पंक्तियां-:

तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

दुष्यंत कुमार।
Image Source : SOCIAL MEDIA
दुष्यंत कुमार।

दुष्यंत कुमार

हिंदी के कवियों में दुष्यंत कुमार की गिनती भी प्रमुखता से की जाती रही है। दुष्यंत ने सिर्फ 44 वर्ष के जीवन में अपार ख्याति अर्जित की। उन्होंने 'कहां तो तय था, कैसे मंजर, खंडहर बचे हुए हैं' जैसी कई कविताओं के माध्यम से ऐसे सवाल किए जो लोगों के मन में आज भी कायम हैं। सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत आदि उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था। पढ़ें उनकी कुछ पंक्तियां-:

  • हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
  • कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
Image Source : SOCIAL MEDIA
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने कई कहानियां और उपन्यास भी लिखे लेकिन उनकी ख्याति विशेष रूप से कविताओं के कारण ज्यादा हुई। 'सरोज-स्मृति, राम की शक्ति-पूजा और तुलसीदास, अनामिका’ जैसी कई रचनाएं आज भी काफी प्रचलित हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को उनके मरणोपरांत भारत का प्रतिष्ठित सम्मान 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया था। पढ़ें उनकी कुछ पंक्तियां-:

जागो फिर एक बार
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें
अरुण-पंख तरुण-किरण
खड़ी खोलती है द्वार
जागो फिर एक बार।

सुदामा पांडेय 'धूमिल'।
Image Source : SOCIAL MEDIA
सुदामा पांडेय 'धूमिल'।

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

हिंदी की समकालीन कविता के दौर में सुदामा पांडेय 'धूमिल' को मील का पत्थर माना जाता हैं। धूमिल अपनी क्रांतिकारी और प्रतिरोधी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। धूमिल द्वारा लिखे गए 'संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे' जैसे काव्य संग्रह आज के दौर में भी प्रचलित हैं। 1979 में उन्हें मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था। पढ़ें उनकी कुछ पंक्तियां-:

एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ- यह तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है।

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