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'21वीं सदी में ऐसा कृत्य', जादू-टोना के आरोप में महिला को निर्वस्त्र करने पर सुप्रीम कोर्ट हैरान

एक महिला को जादू-टोना करने के आरोप में उसको शारीरिक रूप से प्रताड़ित किए जाने पर शीर्ष अदालत ने हैरानी जताई। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के साथ सार्वजनिक रूप से मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया, जो निस्संदेह उसकी गरिमा का अपमान था। इस घटना ने कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर दिया, क्योंकि ऐसे कृत्य 21वीं सदी में हो रहे हैं।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Dec 20, 2024 6:58 IST, Updated : Dec 20, 2024 6:59 IST
supreme court
Image Source : FILE PHOTO सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना संवैधानिक भावना पर धब्बा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जादू-टोना के आरोप में एक महिला के साथ सार्वजनिक रूप से शारीरिक दुर्व्यवहार और उसके कपड़े उतरवाने की घटना से उसकी अंतरात्मा हिल गई है। कोर्ट ने कहा कि, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के मामले में समानता की बात करें तो अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट द्वारा मामले की जांच पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

क्या है पूरा मामला?

यह घटना मार्च 2020 में बिहार के चंपारण जिले में हुई थी। यहां पर 13 लोगों पर शिकायतकर्ता की दादी पर जादू-टोना करने का आरोप लगाते हुए हमला करने का आरोप था। चुड़ैल को नंगा करके घुमाने की बात कहते हुए आरोपियों ने उसकी साड़ी फाड़ दी थी। उन्होंने बीच-बचाव करने आई एक अन्य महिला पर भी हमला किया था। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया। हालांकि आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी।

शीर्ष अदालत ने जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को निर्वस्त्र करने और उनका उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने वाले आदेश की निंदा की। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने मामले को परेशान करने वाले तथ्यों पर आधारित बताया। बेंच ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो उसके मानवाधिकार खतरे में पड़ते हैं, जो उसे मनुष्य होने के आधार पर हासिल हैं और विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अधिनियमों के तहत प्रदत्त हैं।

'जादू-टोना के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करना संवैधानिक भावना पर धब्बा'

जादू-टोना से जुड़े मामलों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का जिक्र करते हुए बेंच ने कहा कि प्रत्येक मामला संवैधानिक भावना पर धब्बा था। उसने कहा, ‘‘जादू-टोना, जिसका आरोप पीड़ितों में से एक पर लगाया गया है, निश्चित रूप से एक ऐसी प्रथा है, जिससे दूर रहना चाहिए। इस तरह के आरोपों का पुराना इतिहास है और अक्सर उन लोगों के लिए दुखद परिणाम होते हैं, जिन पर आरोप लगते हैं।’’ बेंच ने कहा, "जादू-टोना अंधविश्वास, पितृसत्ता और सामाजिक नियंत्रण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसे आरोप अक्सर उन महिलाओं के खिलाफ लगाए जाते थे, जो या तो विधवा हैं या बुजुर्ग।"

बेंच ने कहा कि बिहार के चंपारण जिले में 13 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी, लेकिन पुलिस ने केवल लखपति देवी के खिलाफ चार्जशीट दायर की। निचली अदालत ने 16 जुलाई 2022 को लखपति और एफआईआर में नामजद अन्य लोगों के खिलाफ संज्ञान लिया। आरोपियों ने अपने खिलाफ दायर मामले को रद्द करने के अनुरोध के साथ पटना हाईकोर्ट का रुख किया था। हाईकोर्ट ने चार जुलाई को निचली अदालत में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए स्थगन आदेश से व्यथित शिकायतकर्ता ने शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसे 26 नवंबर को सूचित किया गया कि संज्ञान आदेश को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका 22 नवंबर को वापस ले ली गई है।

'21वीं सदी में ऐसा कृत्य'

शीर्ष अदालत ने कहा कि एफआईआर में कहा गया है कि पीड़िता के साथ सार्वजनिक रूप से मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया, जो निस्संदेह उसकी गरिमा का अपमान था। उसने पीड़िता के खिलाफ "कुछ अन्य कृत्यों" का भी संज्ञान लिया, जिसने उसकी अंतरात्मा को झकझोर दिया, क्योंकि ऐसे कृत्य 21वीं सदी में हो रहे थे।

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