'टू-फिंगर टेस्ट' को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इसे 'अवैज्ञानिक' बताते हुए कहा है कि पीड़िताओं का टू-फिंगर टेस्ट करना उन्हें फिर से प्रताड़ित करना है। यही नहीं कोर्ट ने मेडिकल की पढ़ाई से भी टू-फिंगर टेस्ट हटने को कहा है। अदालत ने चेतावनी भी दी है कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे दोषी ठहराया जाएगा।
ये फैसला झारखंड सरकार की याचिका पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सुनाया है। बता दें, झारखंड हाईकोर्ट ने रेप और मर्डर के आरोपी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय को बरी कर दिया था। जिसके बाद झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए शैलेंद्र राय को दोषी माना है और उम्रकैद की सजा सुनाई है।
क्या है टू-फिंगर टेस्ट?
'टू-फिंगर टेस्ट' का इस्तेमाल रेप के आरोपों की जांच के लिए किया जाता रहा है। इसे वर्जिनिटी टेस्ट भी कहा जाता था। टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो अगुंलियां डाली जाती हैं। टेस्ट करने का मकसद यह पता लगाना होता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं। इसमें प्राइवेट पार्ट की मांसपेशियों के लचीलेपन और हाइमन की जांच होती है। अगर प्राइवेट पार्ट में हाइमन मौजूद होता है, तो किसी भी तरह के शारीरिक संबंध ना होने का पता चलता है। अगर हाइमन को नुकसान पहुंचा होता है तो उस महिला को सेक्सुअली एक्टिव माना जाता है।
हाइमन क्या है?
हाइमन आमतौर पर ऊतक का एक अंगूठी के आकार का टूकड़ा होता है, जो महिलाओं के योनि के उद्घाटन के चारों ओर होता है। कभी-कभी यह योनि के उद्घाटन के ठीक नीचे को कवर करता है। दुर्लभ मामलों में हाइमन महिलाओं के पूरे योनि उद्घाटन को कवर करता है और मासिक धर्म से संबंधित समस्याएं होने लगती हैं।
एक्सपर्ट इसे अवैज्ञानिक टेस्ट मानते हैं
एक्सपर्ट इस टेस्ट को अवैज्ञानिक मानते हैं। इनका कहना है कि संभोग के अलावा कई करणों से भी हाइमन टूट सकता है। इसमें कोई खेल खेलना, साइकिल चलाना, टैम्पोन का उपयोग करना या मेडिकल जांच के दौरान शामिल है।