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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की सियासत में क्यों अहम है शिवाजी पार्क, इसे लेकर आमने-सामने आए शिंदे और ठाकरे

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के राजनीति में मुंबई के शिवाजी पार्क का क्या लेना-देना है? इतिहासकारों एवं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महाराष्ट्र राजनीति से शिवाजी पार्क का गहरा संबंध है

Edited By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Published on: September 25, 2022 20:26 IST
Maharashtra Politics- India TV Hindi
Image Source : TWITTER Maharashtra Politics

Highlights

  • शिवसैनिक इसे शिवाजी पार्क शिव तीर्थ कहते हैं
  • शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के हाथ से सत्ता निकल गई
  • इस मैदान और आवासीय क्षेत्र का अपना एक इतिहास है

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के राजनीति में मुंबई के शिवाजी पार्क का क्या लेना-देना है? इतिहासकारों एवं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महाराष्ट्र राजनीति से शिवाजी पार्क का गहरा संबंध है, जिसने समय समय पर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय की। भारतीय क्रिकेट के पालने के रूप में लोकप्रिय मुंबई का यह विशाल खेल का मैदान कई सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों का भी स्थल रहा है जिसने पिछली सदी में राज्य के इतिहास का रूप तय किया। सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट जगत में बुलंदियों को छूने से पहले यहीं चौके-छक्के जड़े थे। शिवसेना के लिए इसका विशेष स्थान है। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 56 साल पहले यहीं पर पहली रैली की थी उसके बाद हर साल दशहरे पर यह कार्यक्रम होने लगा। 

क्या है पूरा विवाद?

वरिष्ठ शिवसेना नेता सांसद गजानन कीर्तिकर ने कहा कि ठाकरे समय समय पर पार्टी का एजेंडा घोषित करने, अपने प्रतिद्वंद्वियों पर निशाना साधने और अपने समर्थकों के बीच में उत्साह भरने के लिए भाषण देने के लिए इन्हीं रैलियों का इस्तेमाल करते थे। साल 2012 में जब बाल ठाकरे का निधन हुआ, तब इसी मैदान में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। शिवसैनिक इसे शिवाजी पार्क शिव तीर्थ कहते हैं, जहां अब बाल ठाकरे का स्मारक है। यही वजह है कि शिवाजी पार्क शिवसेना के दो धड़ों के बीच घमासान का नया विषय बन गया है। एक धड़े की अगुवाई महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे हैं जबकि दूसरे धड़े का नेतृत्व उनके पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे कर रहे हैं।

असली शिवसैनिक कौन?
शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के हाथ से सत्ता निकल गई। पार्टी के ज्यादातर विधायक शिंदे के साथ गये और शिंदे ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी। तब से दोनों धड़ों के बीच इस बात को लेकर तीखी अदालती लड़ाई चल रही है कि किसके पास शिवसेना और उसके संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत का अधिकार है। यह लड़ाई इस माह के शुरू में तब और तीखी हो गयी, जब दोनों धड़ों ने शिवाजी पार्क में दशहर रैली करने की ठानी। कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी होने के डर से बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने दोनों खेमों को रैली की इजाजत देने से इनकार कर दिया था लेकिन शुक्रवार को उच्च न्यायालय ने उद्धव ठाकरे खेमे को रैली की अनुमति दे दी।

हर साल इसी पार्क में होती है दशहरा रैली 
इस फैसले से ठाकरे के समर्थक खुशी से झूम उठे क्योंकि वे असली शिवसेना होने के अपने दावे पर अदालती आदेश को मुहर मान रहे हैं। उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के प्रवक्ता अरविंद सावंत ने कहा, ‘‘बाल ठाकरे ने पांच दशक तक हर साल शिवाजी पार्क में अपनी दशहरा रैली की। बाद में उद्धव जी ने पार्टी प्रमुख के रूप में हमारा मार्गदर्शन किया। इसलिए (वहां रैली करना) हमारा स्वाभाविक अधिकार है।’’ सावंत ने आगे कहा कि निधन से पूर्व बीमार बाल ठाकरे अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से बेटे उद्धव एवं पोते आदित्य का समर्थन करने की अपील करने के लिए डिजिटल तरीके से रैली को संबोधित करते थे। 

माहिम से शिवाजी पार्क कैसे बना?
इस मैदान और आवासीय क्षेत्र का अपना एक इतिहास है। लेखक शांता गोखले ने इस पर एक किताब लिखी थी जिसका शीर्षक था “शिवाजी पार्क: दादर 28: हिस्ट्री, प्लेसेज, पीपुल।” उन्होंने लिखा है कि समुद्र तट के किनारे स्थित इस पार्क को जनता के लिए 1925 में खोला गया था। इसे पहले माहिम पार्क कहा जाता था  साल 1927 में छत्रपति शिवाजी महाराज की 300वीं जयंती के अवसर पर लोगों की मांग पर इसका नाम शिवाजी पार्क रख दिया गया था। इसके बाद से यह पार्क महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है जिसमें संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन भी शामिल है। 

आखिर सावरकर के लिए क्यों है ये खास 
इस आंदोलन के जरिये ही 1960 में महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई थी। इसके बाद शिवाजी पार्क शिवसेना की राजनीति का केंद्र बन गया। कीर्तिकर ने पीटीआई-भाषा से कहा कि इस स्थान से शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे पार्टी का एजेंडा घोषित करते थे जैसे कि मराठी मानुष, हिंदुत्व और विविध विषयों पर पार्टी का रुख। उन्होंने कहा कि यहीं से वह विरोधियों तथा राज्य एवं केंद्र सरकारों पर भी तीखे हमले करते थे। उन्होंने कहा कि पार्क के पास ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर का एक स्मारक भी है। सावरकर उसी क्षेत्र में एक बंगले में रहते थे।

तय किया गया कि इसी पार्क में रैली होगी
ठाकरे परिवार बांद्रा स्थित मातोश्री बंगले से पहले उसी क्षेत्र में रहता था और पार्टी मुख्यालय सेना भवन पार्क के पास ही है। वरिष्ठ शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने अपनी पुस्तक “शिवसेना- कल आज और कल” में लिखा है कि शिवाजी पार्क में पार्टी की सबसे पहली रैली कैसे आयोजित हुई थी। बाल ठाकरे एक कार्टून पत्रिका का संपादन करते थे जिसका नाम था ‘मार्मिक।’ इस पत्रिका ने 23 अक्टूबर 1966 को एक नोट प्रकाशित किया कि बुराई पर अच्छाई की जीत की याद में हिंदुओं का त्यौहार मनाने के लिए 30 अक्टूबर को शाम साढ़े पांच बजे शिवाजी पार्क में एक रैली आयोजित होगी।

बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट थे
ठाकरे पहले से ही अपनी कलम और कूची (ब्रश) से उन समस्याओं को रेखांकित करते रहे थे, जिन्हें वह मुंबई के मूल निवासियों पर किये गए अन्याय के तौर पर देखते थे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि रैली किसी ऑडिटोरियम में आयोजित की जाए क्योंकि कितने लोग आएंगे, इसका अंदाजा नहीं था। मराठी पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने शिवसेना के इतिहास पर लिखी पुस्तक में कहा है कि बाल ठाकरे को भी लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया का अंदाजा नहीं था क्योंकि वह केवल एक कार्टूनिस्ट और पत्रिका के संपादक थे।

उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। अकोलकर ने कहा कि तमाम आशंकाओं के विपरीत शिवाजी पार्क में आयोजित रैली सफल रही और बाल ठाकरे ने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। शिवसेना नेता और मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडनेकर का कहना है कि दशहरा अब पार्टी की परंपरा बन चुकी है। 

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