Friday, November 15, 2024
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पारसी होने के बावजदू रतन टाटा का हिंदू रीति-रिवाज से क्यों होगा अंतिम संस्कार?

पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के नियम काफी अलग है। हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है। पारसी धर्म में मौत के बाद शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: October 10, 2024 8:29 IST
ratan tata- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO रतन टाटा

देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का का अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। उससे पहले सुबह 10 बजे उनका पार्थिव शरीर नरीमन प्लाइंट के NCPA लॉन में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बुधवार रात साढ़े 11 बजे आखिरी सांस ली। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रतन टाटा का इलाज चल रहा था जहां उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते भर्ती करवाया गया था। रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं और उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों की जगह हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका बिल्कुल अलग

बता दें कि पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के नियम काफी अलग है। पारसियों में अंतिम संस्कार की परंपरा 3 हजार साल पुरानी हैं। हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है। पारसी धर्म में मौत के बाद शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है। हालांकि रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया जाएगा। इससे पहले सितंबर 2022 में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति रिवाजों से किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना महामारी के समय शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हुए थे। उस दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति रिवाजों पर रोक लगा दी गई थी।

पारसी समुदाय में कैसे होता है अंतिम संस्कार?

पारसी समुदाय के व्यक्ति की मौत के बाद शव को आबादी क्षेत्र से दूर बने दखमा यानी टावर ऑफ साइलेंस में ले जाया जाता है। कई जगह यह कोई छोटी पहाड़ी भी हो सकती है। टावर ऑफ साइलेंस में शव को ऊंचाई पर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। इसके बाद मृतक के लिए आखिरी प्रार्थना शुरू की जाती है। प्रार्थना के बाद शव को चील और गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है।

हिंदू रीति रिवाज का ये है कारण

कभी मौजूदा ईरान यानी फारस को आबाद करने वाले इस समुदाय के लोग अब पूरी दुनिया में थोड़े से ही बचे हैं। 2021 में हुए एक सर्वे के मुताबिक दुनिया में पारसियों की तादाद 2 लाख से भी कम है। इस समुदाय को दुनियाभर में अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा के चलते मुश्किल का सामना करना पड़ता है। टावर ऑफ साइलेंस के लिए उचित जगह नहीं मिलने और चील व गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी के चलते पिछले कुछ सालों में पारसी लोगों ने अपने अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव शुरू किया है।

पारसी समुदाय के काइकोबाद रुस्तमफ्रैम हमेशा यही सोचते आए थे कि जब वह मरेंगे तो पारसी धर्म की परंपरा के अनुसार गिद्ध उनके शव को ग्रहण करेंगे लेकिन अब भारत के आसमान से यह पक्षी लगभग गायब हो चुका है। ऐसे में पारसियों के लिए अपनी सदियों पुरानी परंपरा को निभाना भी बहुत मुश्किल हो चला है। अब कई पारसी परिवार अपने परिजनों को हिंदुओं के श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में ले जाने लगे हैं।

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