भारत देश के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन बेहद खास है। इस दिन भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ था। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए करीब 200 साल तक जद्दोजहद के बाद इस दिन देश को आजादी मिली थी। बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बान दी, तब जाकर ये आजादी मिली। 14-15 अगस्त की दरम्यानी रात को देश आजाद भारत की फिजा में सांस ले रहा था। 15 अगस्त की सुबह तक पूरा देश आजादी की जश्न में डूब गया था। हालांकि, इस दौरान एक ऐसी शख्सियत थे जो इस आजादी के जश्न से मीलों दूर थे। वे थे राष्ट्रपिता महात्मा गांध, जिन्होंने भारत को आजाद कराने में अहम किरदार निभाया था।
बापू नहीं पहुंचे दिल्ली
दरअसल, आजादी से पहले देश को विभाजन का दर्द झेलना पड़ा था, जिसकी वजह से देश के कई हिस्से में दंगे ने भयावह रूप अख्तियार कर लिया था। इस दौरान महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 के दिन बंगाल के नोआखली में थे, जहां वह हिंदू-मुसलमानों के बीच चल रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे थे। ऐसे में एक ओर जहां जहां देश आजादी के जश्न में डूबा था, तो वहीं दूसरी तरफ आजादी दिलाने में अहम किरदार अदा करने वाले बापू अनशन पर बैठे थे।
बापू ने क्या कहा था?
दिल्ली में मनाए जाने वाले स्वत्रंता दिवस के जश्न में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री जवाहार लाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एक साथ मिलकर महात्मा गांधी को खत भी लिखा था, इसके बावजूद बापू नहीं आए थे। महात्मा गांधी उस वक्त बंगाल में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में बंटवारे की लगी आग को शांत करने की कोशिश में लगे हुए थे। इस दौरान उन्होंने ये भी कहा था, "मेरे लिए आजादी के ऐलान के मुकाबले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अमन कायम करना ज्यादा अहम है।"