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Cremation: महिलाएं क्यों नहीं जाती श्मशान घाट पर, ये हैं इसके पीछे के 4 बड़े कारण

Cremation: हिंदू रीति रिवाज के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे श्मशान घाट पर ले जाकर दाह संस्कार किया जाता है। आपने देखा होगा कि श्मशान घाट पर महिलाएं कभी नहीं जाती हैं।

Edited By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Updated on: August 24, 2022 16:19 IST
 Cremation- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Cremation

Highlights

  • सैकड़ों निराधार परंपराओं में विश्वास करते रहे हैं
  • स्त्रियां भी श्मशान घाट पर जाने लगी है
  • हिंदू धर्म में महिलाओं का बाल मुड़वाना अशुभ माना जाता है

Cremation: हिंदू रीति रिवाज के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे श्मशान घाट पर ले जाकर दाह संस्कार किया जाता है। आपने देखा होगा कि श्मशान घाट पर महिलाएं कभी नहीं जाती हैं। इसके पीछे कारण क्या है आपने कभी सोचा है। जब भी किसी पुरुष या स्त्री की मौत होती है तो घर के चौखट तक ही महिलाओं का योगदान रहता है लेकिन श्मशान घाट पर सारे कर्मकांड को पुरुषों के द्वारा ही पूरा किया जाता है। तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों महिला श्मशान घाट पर नहीं जाती हैं। इसके पीछे मुख्य पांच कारण है। 

1. हिंदू धर्म में 16वें संस्कार होते हैं, जिसमें इंसान के मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार यानी 16 संस्कार के रूप में पूरा किया जाता है। हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार, श्मशान घाट पर नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है जो आसानी से महिलाओं को ऊपर हावी हो सकता है। जिसके कारण से महिलाएं किसी भी अज्ञात बीमारी का शिकार हो सकती हैं। 

2. आपने देखा होगा जब किसी इंसान की मृत्यु होती है तो सबसे अधिक महिलाओं के अंदर दुख देखा जाता है। अगर कोई सबसे अधिक रोते हुए दिखता है तो वह महिला होती हैं यानी आसान भाषा में कहें तो महिलाओं का जो दिल होता है काफी कोमल होता है ऐसे में श्मशान घाट पर जाना उनके लिए सही नहीं होता है क्योंकि वह अपने दुख और भी ज्यादा श्मशान घाट पर इजहार कर सकती हैं। उनके दुख से मृत व्यक्ति के आत्मा को भी दुख पहुंचता है और उन्हें मुक्ति मिलने में भी परेशानी होती है। साथ ही साथ उनके सेहत पर असर पड़ सकता है। 
3. श्मशान घाट पर शव को जलाया जाता है तो उस समय कई जहरीले कीटाणु वातावरण में शामिल होते हैं। आपने देखा होगा कि शव जलाने के बाद अक्सर पुरुष अपने बाल को कटवाते हैं और उसके बाद नदी में नहाते हैं जबकि हिंदू धर्म में महिलाओं का बाल मुड़वाना अशुभ माना जाता है। 
4. ऐसी मान्यता है कि श्मशान घाट पर कई आत्माएं भी होते हैं जो महिलाओं के अंदर शरीर पर हावी होने की संभावना बनी रहती है जिसके कारण महिलाओं को श्मशान घाट पर जाने से मनाही है। 

समय के साथ रिवाजों में हुए बदलाव 
हालांकि अब समय बदल गया है कि अब आपने देखा होगा कि स्त्रियां भी श्मशान घाट पर जाने लगी है। एक जमाने में राजाओं और महलों के युग में, एक पुत्र को अपने पिता के सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। इस रिवाज में वर्षों से बदलाव आया है अब कई माता-पिता अपनी बेटियों को विरासत का अधिकार देते हैं लेकिन यह मामल अंतिम संस्कार करने से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता था कि जो मृतक की संपत्ति का वारिस होता है उसे अंतिम संस्कार जुलूस का नेतृत्व करना चाहिए। जब परिवार के सदस्य किसी पुरुष पड़ोसी या "श्रेष्ठ" लिंग के दूर के रिश्तेदार को मृतक की अपनी बेटी या पत्नी के बजाय चिता को जलाने के लिए कहते हैं तो अब कोई सवाल नहीं करता है। पुराने समय की प्रचलित मान्यताएं कहती हैं कि पुत्र जन्म और मृत्यु के बीच का सेतु होता है। एक बार नश्वर जीवन समाप्त हो जाने के बाद, हिंदू परंपरा मानती है कि जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति शाश्वत आनंद प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। लोग इस बात पर अडिग हैं कि अगर कोई लड़की अंतिम संस्कार करती है, तो मृत व्यक्ति के लिए इस दुष्चक्र से मुक्त होना संभव नहीं होगा। यह 2020 है और हम अभी भी इन तथाकथित तथ्यों पर विश्वास कर रहे हैं। हम सैकड़ों निराधार परंपराओं में विश्वास करते रहे हैं जो हमारे पूर्वजों से हमें दी जा रही हैं। यह उनमें से एक है। माता-पिता के अंतिम संस्कार के दौरान हर महिला उपस्थित होने की हकदार है यदि वह चाहती है। जब वह जीवन भर अपने परिवार की देखभाल कर सकती है, तो उन्हें उनके अंतिम संस्कार में एक बाहरी व्यक्ति के रूप में क्यों देखा जाता है?

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