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New Education Policy 2022: आखिर क्यों बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ने पर हो रहे हैं मजबूर, पढ़े ये पूरी रिपोर्ट

New Education Policy 2022: देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में माध्यमिक स्तर पर छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने (ड्रॉपआउट) की दर राष्ट्रीय औसत (14.6 प्रतिशत) से अधिक है।

Edited By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Published : Sep 25, 2022 17:06 IST, Updated : Sep 25, 2022 17:06 IST
New Education Policy 2022
Image Source : INDIA TV/AP New Education Policy 2022

Highlights

  • उत्तराखंड में 8.41 प्रतिशत और गोवा में 10.17 प्रतिशत दर्ज की गई
  • शिक्षक-अभिभावक स्तर पर बैठक आयोजित कर जागरूकता फैलाना जरूरी है
  • परिणाम का अच्छा नहीं आना या परिवारिक स्थिति खराब होना भी कारण होता है

New Education Policy 2022: देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में माध्यमिक स्तर पर छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने (ड्रॉपआउट) की दर राष्ट्रीय औसत (14.6 प्रतिशत) से अधिक है। इन राज्यों में झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, नगालैंड आदि शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इन राज्यों को इस ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए विशेष कदम उठाने का सुझाव दिया है। समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की वर्ष 2022-23 की कार्य योजना संबंधी बैठकों के दस्तावेजों से यह जानकारी मिली है।

100 प्रतिशत नामांकन असंभव

ये बैठकें अलग-अलग राज्यों के साथ अप्रैल से जुलाई के बीच हुईं। सूत्रों के अनुसार, सरकार नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लक्षित साल 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 प्रतिशत सकल नामांकन दर (जीईआर) हासिल करना चाहती है और बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ने को इसमें बाधा मान रही है। पीएबी की बैठक के दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में बिहार में स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 21.4 प्रतिशत, गुजरात में 23.3 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 23.8 प्रतिशत, ओडिशा में 16.04 प्रतिशत, झारखंड में 16.6 प्रतिशत, त्रिपुरा में 26 प्रतिशत और कर्नाटक में 16.6 प्रतिशत दर्ज की गई।

पीएबी कर रहा है लगातार प्रयास
दस्तावेजों के मुताबिक, संबंधित अवधि में दिल्ली में स्कूलों में दाखिला लेने वाले विशेष जरूरत वाले बच्चों (सीडब्ल्यूएसएन) की अनुमानित संख्या 61,051 थी जिनमें से 67.5 प्रतिशत ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी या उनकी पहचान नहीं की जा सकी है। बोर्ड ने दिल्ली में स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर बच्चों को मुख्यधारा में लाने का कार्य त्वरित आधार पर पूरा करने को कहा है। आंध्र प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर वर्ष 2019-20 में ड्रॉपआउट दर 37.6 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 8.7 प्रतिशत रह गई। ऐसे में पीएबी ने राज्य से ड्रॉपआउट दर और कम करने के लिए प्रयास जारी रखने को कहा है। 

लड़कियों ने सबसे अधिक पढ़ाई से तोड़ा नाता
दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर 12.5 प्रतिशत छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी जिसमें लड़कों का औसत 11.9 प्रतिशत और लड़कियों का 13.2 प्रतिशत है। वहीं, पश्चिम बंगाल में 10 जिलों में माध्यमिक स्कूली स्तर पर ड्रॉपआउट दर 15 प्रतिशत से अधिक है। पीएबी ने राज्य को इस दर को कम करने के लिए विशेष कार्य योजना तैयार करने को कहा है। असम में वर्ष 2020-21 में माध्यमिक स्तर पर 19 जिलों में ड्रॉपआउट दर 30 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई। नगालैंड में आठ जिलों में यह दर 30 प्रतिशत से अधिक रही। 

पढ़ाई छोड़ने की असली वजह क्या?
केरल में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 7.1 प्रतिशत, उत्तराखंड में 8.41 प्रतिशत और गोवा में 10.17 प्रतिशत दर्ज की गई। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के हाल के एक सर्वेक्षण में लड़कियों के बीच में स्कूल छोड़ने के कारणों में कहा गया है कि 33 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई घरेलू कार्य करने और 25 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई शादी के कारण छूट गई है। इसके अनुसार, कई जगहों पर यह भी पाया गया कि बच्चों ने स्कूल छोड़ने के बाद परिजनों के साथ मजदूरी या लोगों के घरों में सफाई करने का काम शुरू कर दिया।

ऐसे छात्रों को कैसे फिर से शिक्षा से जोड़ा जाए?
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप ने कहा कि ग्राम पंचायत और वार्ड स्तर पर स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाले बच्चों की मैपिंग कराने और स्कूलों में महीने में कम से कम एक बार शिक्षक-अभिभावक स्तर पर बैठक आयोजित कर जागरूकता फैलाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों की पहचान करने एवं उनके घर जाकर संवाद किया जाना चाहिए क्योंकि कई बार परीक्षा परिणाम का अच्छा नहीं आना या परिवारिक स्थिति खराब होना भी कारण होता है। 

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