Highlights
- पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने विपक्ष की खुली कलई
- तकनीकि समिति ने केंद्र सरकार पर पेगासस से जासूसी के आरोपों को नकारा
- नेताओं, पत्रकारों और प्रभावशाली लोगों के फोन टैपिंग का था आरोप
Pegasus case update: पेगासस जासूसी कांड मामले में मोदी सरकार को घेर रही कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां एक बार फिर से बेनकाब हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान इस मामले की जांच कर रही तकनीकि समिति की रिपोर्ट से सरकार को बदनाम करने की साजिश का भी पर्दाफाश हो गया है। दरअसल जिन जासूसी के आरोपों को लेकर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल केंद्र सरकार पर महीनों से हमलावर थे, उसी मामले में तकनीकि समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कह दिया है कि किसी भी मोबाइल में पेगासस से जासूसी करने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। इस मामले में जासूसी के शक में आने वाले 29 प्रभावशाली लोगों के मोबाइल की जांच तकनीकि समिति ने की थी। मगर समिति की रिपोर्टों से विपक्षी साजिश की कलई खुलकर सामने आ गई है।
दरअसल विपक्ष का आरोप था कि केंद्र सरकार पेगासस स्पाईवेयर के जरिये विपक्षी नेताओं, कुछ पत्रकारों और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों की जासूसी करवा रही है। इस मामले में लंबे समय तक विपक्ष ने सड़क से संसद तक हंगामा किया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। इसमें पेगासस कांड की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रविंद्रन की निगरानी में एक तकनीकि समिति का गठन किया था। अब समिति ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सौंप दी है। इसमें साफ तौर पर विपक्ष के आरोपों को खारिज कर दिया गया है। समिति के अनुसार किसी भी मोबाइल में पेगासस नहीं मिला। कुछ में मॉलवेयर जरूर मिला था। इससे सरकार भारी राहत महसूस कर रही है।
क्या है पेगाससः यह इजरायली स्पाईवेयर है, जिसका नाम पेगासस है। इसी स्पाईवेयर के जरिये विपक्ष ने केंद्र सरकार पर नेताओं, पत्रकारों और अन्य प्रभावशाली लोगों की जासूसी करने का आरोप लगाया था। इसके बाद मामला कोर्ट में आने पर शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर 2021 को तकनीकि समिति का गठन इसकी जांच के लिए किया था। इसमें सेवानिवृत्त जस्टिस के साथ साइबर सिक्यूरिटी, डिजिटल फॉरेंसिक , नेटवर्क और हॉर्ववेयर के एक्सपर्ट लोगों की टीम गठित की गई थी। जस्टिस रविंद्रन की जांच में सहयोग करने के लिए पूर्व आइपीएस आलोक जोशी और साइबर सिक्यूरिटी एक्सपर्ट संदीप ओबरॉय शामिल थे।
मॉलवेयरः यह एक साफ्टवेयर है। इसमें जानबूझकर किसी के कंप्युटर, मोबाइल या साफ्टवेयर या क्लाइंट के कंप्यूटर नेटवर्क इत्यादि की सुरक्षा और गोपनीयता में हस्तक्षेप करने के लिए डिजाइन किया जाता है। कई बार इन सेवाओं में व्यवधान पैदा करने के लिए भी ऐसा किया जाता है।
जांच रिपोर्ट का कुछ हिस्सा वेबसाइट पर होगा अपलोड
इस मामले में तकनीकि समिति की रिपोर्ट का कुछ हिस्सा वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा। हालांकि तकनीकि समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने करने से कुछ याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से रोक लगाने की अपील की है। वहीं तकनीकि समिति ने जांच में सरकार पर असहयोग करने का आरोप भी लगाया है।
रिपोर्ट के बाद भाजपा और विपक्ष में फिर रार
तकनीकि समिति की रिपोर्ट के बाद जहां एक तरफ भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को केंद्र सरकार को बदनाम करने की साजिश बताया तो वहीं दूसरी तरह राहुल गांधी ने कहा कि पेगासस जांच समिति का सरकार ने इस लिए सहयोग नहीं किया कि उनके पास बहुत कुछ गहरा छुपाने के लिए था। वहीं भाजपा ने सुरक्षा से जुड़ा मामला बताकर इसे सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था।
समिति ने कहा देश में साइबर सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत
जांच समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि देश में साइबर सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत है। गैरकानूनी निगरानी करने वाली कंपनियों पर मुकदमा चलना चाहिए। निगरानी और निजता के अधिकार पर कानून और प्रक्रिया में संशोधन हो।