Highlights
- महिला को हर तीन महीने में तीन किश्तों में तलाक दे सकता है
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के पास खुला का अधिकार है
- बेनजीर का 8 महीने का बच्चा भी है
Talaq e Hasanसुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तलाक-ए-हसन को लेकर अपना पक्ष रखा है। । कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन अनुचित नहीं है। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के पास ये खुला तलाक लेने का अधिकार है। आगे उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के बातों से सहमत नहीं हैं। गाजियाबाद की रहने वाली याचिकाकर्ता ने कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि तलाक-ए-सहन महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है। याचिकाकर्ता के वकील पिंकी आनंद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पहले ट्रिपल तलाक को अंसवैधानिक करार कर दिया गया है। लेकिन तलाक-ए-हसन मामला अभी तक अटका पड़ा है।
तलाक-ए-हसन क्या है?
तलाक-ए-हसन के तहत कोई भी मुस्लिम पुरुष किसी भी महिला को हर तीन महीने में तीन किश्तों में तलाक दे सकता है। आसान भाषा में समझे तो यदि कोई व्यक्ति मार्च में अपनी पत्नी को तलाक देता है और अप्रैल में इसे नहीं दोहराता है तो उनकी शादी बरकरार रहेगी। हालांकि अगर एक ही व्यक्ति ने मार्च, अप्रैल और मई में लगातार तीन बार तलाक बोलता है तो यह कानून के मुताबिक तलाक माना जाएगा। तलाक-ए-हसन के मुताबिक ये आखिर बार का मौका होता है कि अगर पति ने पत्नि को तलाक बोल दिया है तो दोनों के बीच की शादी खत्म मानी जाएगी। अगर इन तीन महीनों में दोनों के बीच समझौता हो जाता है तो फिर से कोई निकाह करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
ये खुला विकल्प क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के पास खुला का अधिकार है। आपको बता दे कि खुला तलाक पर पूरा अधिकार महिलाओं का है। अपने पति के साथ नहीं बन रही हैं तो ऐसे में उसके पास ये अधिकार है कि वो अपने पति से तलाक ले सकती है। अगर पति तैयार नहीं है तो महिला दारूल कदा कमिटी में जा सकती है। जहां पर अपनी परेशानी को साझा कर सकती है। इसके बाद दोनो पक्षों की बातों समझा जाएगा फिर बात नहीं बनती है तो काजी महिला को तलाक की इजाजत दे सकता है। हालांकि ऐसे केस आते हैं जहां पर काजी निकाह के समय मौजूद गवाहों की मांग करता है लेकिन गवाह नहीं भी रहे तो ये तलाक कराया जा सकता है। शरिया के कानून के तहत ये फैसला पति और पत्नी पर टिका होता है।
तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्दत भी है एक ऑप्शन
मुस्लिम बोर्ट के मुताबिक, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत भी एक ऑप्शन होता है जिसके जरिए तीन महीन के भीतर तलाक दिया जा सकता है। हालांकि इसमें तीन तलाक बोलने का प्रवाधान नहीं है। पति एक ही बार तलाक बोलकर तीन महीने तक एक ही घर में रह सकते हैं। तीन महीने अंदर आपसी सहमति नहीं बनती है तो तलाक लिया सकता है। अगर बात बन जाती है, दोनों में समझौता हो जाता है तो पति चहता कि तलाक ना दें वो फिर तीन महीने के अंदर तलाक वापस ले सकता है।
पहले भी आ चुके हैं केस
इसी तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि हमने बेनजीर के तरफ से याचिका दाखिल किया है। इस याचिका में बताया गया है कि बेनजीर की शादी दिल्ली के रहने वाले यूसुफ नकी से 2020 में हुई थी। शादी के बाद दोनों के बीच नहीं बन रही थी। घरेलू विवाद के कारण उसके पति ने उसे छोड़ दिया और 5 महीने बाद डाक के जरिए तलाक दे दिया। इस खत में लिखा था कि हमने तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं। बेनजीर का 8 महीने का बच्चा भी है। अब वो अपने पति के साथ नही रहती है।