Highlights
- पिछले कुछ दिनों में PFI के सैकड़ों नेताओं को किया गया गिरफ्तार
- आईएसआईएस सहित अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ इसके संबंध हैं
- 'पीएफआई को अक्सर एक चरमपंथी समूह के रूप में देखा जाता रहा'
Popular Front of India: गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके सहयोगियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए बैन कर दिया। यूपी, कर्नाटक और गुजरात की सरकारों के आग्रह और एनआईए, ईडी, पुलिस की राष्ट्रव्यापी कार्रवाई के तुरंत बाद बैन लगा दिया गया।
पीएफआई के अध्यक्ष ओएमए सलाम ने इसे सीएए (CAA) के विरोध प्रदर्शनों में शामिल छात्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ संदिग्धों की तलाश करार देते हुए कहा कि संगठन के खिलाफ जांच राजनीति से प्रेरित थी। 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के कुछ हिस्सों में CAA के विरोध प्रदर्शनों में कथित संलिप्तता के लिए पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
पीएफआई पर केंद्र सरकार का बैन आतंकवाद के वित्तपोषण (पैसों का प्रबंध करना) और प्रशिक्षण समेत आतंकवाद पर केंद्रित कई मामलों में लगाया गया। नतीजतन, पिछले कुछ दिनों में इसके सैकड़ों नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। संगठन पर बैन लगाने के के पीछे एक वजह ये भी है कि वह एक समुदाय के कमजोर व्यक्तियों को कट्टरपंथी बनाने में लगा हुआ था। आईएसआईएस सहित अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ इसके संबंध हैं और यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। प्रमुख हिंसक घटनाएं पीएफआई की ओर इशारा करती हैं।
एक दशक से अधिक समय तक जांच के घेरे में रहने के बाद पीएफआई लश्कर, जेईएम, सिमी और अल कायदा की पसंद की सूची में शामिल हो गया। प्रतिबंध के कुछ ही घंटों के बाद पीएफआई ने इसे भंग करने की घोषणा की। इसके केरल राज्य महासचिव अब्दुल सत्तार ने कहा, हमारे महान देश के कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में संगठन निर्णय को स्वीकार करता है। हालांकि, पीएफआई अब प्रतिबंधित है, लेकिन पीएफआई को अक्सर एक चरमपंथी समूह के रूप में देखा जाता रहा।
पीएफआई की उत्पत्ति और विचारधारा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (Karnataka Forum for Dignity) और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए। 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में तथाकथित 'एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस' के दौरान एक रैली में पीएफआई के गठन की औपचारिक रूप से घोषणा की गई थी।
2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) पीएफआई से बाहर हो गई, जिसका उद्देश्य मुसलमानों, दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और समान विकास और सभी नागरिकों के बीच सत्ता को निष्पक्ष रूप से शेयर करना था। पीएफआई एसडीपीआई की राजनीतिक गतिविधियों के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं का मुख्य प्रदाता है। जबकि पीएफआई ने कभी चुनाव नहीं लड़ा।
सिमी पर प्रतिबंध के बाद उभरे, पीएफआई ने खुद को अल्पसंख्यकों और समाज के हाशिए के वर्गों के अधिकारों का समर्थन करने के लिए एक संगठन के रूप में प्रस्तुत किया। इसने अक्सर मुख्यधारा की पार्टियों की कथित जनविरोधी नीतियों को निशाना बनाया, हालांकि ये पार्टियां (कर्नाटक में कांग्रेस, बीजेपी और जद-एस) एक-दूसरे पर चुनावों के दौरान मुस्लिम वोटों को मजबूत करने के लिए पीएफआई से समर्थन लेने का आरोप लगाते रहे।
प्रोफेसर का हाथ काटना
2015 में पहली सजा तब हुई जब एक विशेष अदालत ने प्रोफेसर टीजे जोसेफ का दाहिना हाथ कथित तौर पर एक प्रश्न पत्र में पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने के लिए काट दिया गया था। यूपीए सरकार ने इस केस को केरल पुलिस से एनआईए को ट्रांसफर कर दिया था।
2017 में एनआईए ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक विस्तृत रिपोर्ट में यह दावा करते हुए प्रतिबंध लगाने की मांग की थी कि पीएफआई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और केरल के मलप्पुरम में एक धार्मिक शिक्षा केंद्र सत्य सरानी जैसे संगठनों का उपयोग जबरन धर्मांतरण करने के लिए कर रहा था।
5 जुलाई 2020 को तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास को संबोधित राजनयिक सामान से 15 करोड़ रुपये का 30 किलोग्राम सोना जब्त किया गया था। मामला एनआईए को सौंपे जाने के बाद सूत्रों ने आरोप लगाया कि तस्करी के सोने का इस्तेमाल पीएफआई की ओर से राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
कर्नाटक में SDPI की बढ़ती उपस्थिति
2013 तक एसडीपीआई ने केवल स्थानीय चुनाव लड़ा और 21 नागरिक निर्वाचन क्षेत्रों में सीटें जीतीं। इस साल से यानी 2013 से एसडीपीआई ने कर्नाटक विधानसभा और संसद के चुनावों में उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। 2013 में कर्नाटक में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने एसडीपीआई और पीएफआई सदस्यों के खिलाफ मामलों को हटा दिया, जिन पर पिछली बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान सांप्रदायिक गड़बड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। बीजेपी सरकार की ओर से 2008 से 2013 तक 1,600 पीएफआई कार्यकतार्ओं के खिलाफ दर्ज कुल 176 मामले कांग्रेस सरकार की ओर से हटा दिए गए थे।
एसडीपीआई ने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव दक्षिण कन्नड़ सीट से लड़ा था, लेकिन उसे 2014 में 1 फीसदी और 2019 में 3 फीसदी वोट ही मिले थे। दिसंबर 2019 में पुलिस फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई, जब मंगलुरु में सीएए के विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था। बाद में मंगलुरु पुलिस ने सबूत मिलने का दावा किया कि पीएफआई और एसडीपीआई से जुड़े समूहों ने हिंसा से पहले भड़काऊ संदेश शेयर किए थे। कर्नाटक सरकार ने केंद्र सरकार की घोषणा से पहले पीएफआई पर बैन लगाने की मांग की थी, केरल उन राज्य सरकारों की सूची में शामिल नहीं है, जिन्होंने बैन लगाने की मांग की थी।
पीएफआई ने बढ़ाया अपना पदचिह्न
केरल में इसका प्रभाव सबसे प्रमुख है, जहां पर बार-बार हत्या, दंगा, धमकाने और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने के आरोप लगते रहे हैं। पीएफआई ने अपने आधार का विस्तार किया है और एनआईए के अनुसार 23 राज्यों में ये फैल गया। 2012 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने हाई कोर्ट से कहा था कि पीएफआई बैन संगठन सिमी के नए रूप के अलावा कुछ नहीं है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का गठन अप्रैल 1977 में यूपी के अलीगढ़ में हुआ था। सिमी का मिशन इसे एक इस्लामिक इकाई में परिवर्तित करके भारत को आजाद कराना था। 2014 में चांडी सरकार ने एक और हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया था कि पीएफआई कार्यकर्ता 27 सांप्रदायिक रूप से प्रेरित हत्याओं में शामिल हैं और राज्य में हत्या के प्रयास के 86 मामले और सांप्रदायिक अपराधों के 106 मामलों में भी इसना हाथ है।
केरल सरकार ने हाई कोर्ट को बताया कि PFI का एक गुप्त एजेंडा था- धर्मांतरण को बढ़ावा देकर समाज का इस्लामीकरण, इस्लाम को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से मुद्दों का सांप्रदायिकरण, मुस्लिम युवाओं की भर्ती और रखरखाव, जिसमें व्यक्तियों का चयनात्मक उन्मूलन शामिल है, जो उनकी धारणा में इस्लाम के दुश्मन हैं।
अप्रैल 2022 में केरल बीजेपी ने राज्य में धार्मिक आतंकवाद के बढ़ते उदाहरणों के खिलाफ एक अभियान की घोषणा की। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने 18 अप्रैल को कहा, पिछले छह सालों में केरल में 24 बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ता मारे गए हैं, जिनमें से सात पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने मारे हैं। 15 अप्रैल, 2022 को पीएफआी के पलक्कड़ जिला अध्यक्ष और पीएफआई के सदस्य 44 वर्षीय ए. सुबैर की एक मस्जिद के बाहर हत्या कर दी गई थी। बीजेपी के जिला नेतृत्व ने पीएफआई के इस आरोप का खंडन किया कि हत्या को RSS-बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अंजाम दिया था, जिसके बाद पलक्कड़ में एक आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई।
यह देखा जाना बाकी है कि इस तरह का प्रतिबंध सांप्रदायिक गड़बड़ी और हिंसा के तत्वों को खत्म करने में कितना प्रभावी होगा, यह देखते हुए कि इन राष्ट्र-विरोधी तत्वों के पनपने का मूल कारण अभी तक अनसुलझा है।